Tuesday, September 15, 2009

हिन्दी दिवस और बेजुबान जानवर

कल हिन्दी दिवस था और विदा भी हो गया मामला जस का तस, अब पूछियें कि हिन्दी दिवस और बेजुबान जानवर में क्य संबध है ? बताता हूं । हमारी तमाम बोलियां, लिपियां, दुनियां में हमें भाषायी मामलें में सबसे धनी बनाती है पर क्या धनी होने का खिताब हमें मिला नही हां ऊपर से गैरो ने हम पर मेहरबानी ? करके अपनी भाषा जरूर थोप दी बेजुबान समझ कर जैसे हम अखबारों में रोज़ ही पड़ते है फ़लां गाय, साड़, या कुत्ता या फ़िर हिरन आदि के बारे में मीडिया विशेषण लगाती है अवारा, बेजुबान वगैरह वगैरह.........क्या आप सब ने कभी सोचा कि इन्हे अवारा किसने बनाया इस धरती पर ये हम से पहले से है और हमने इनके घरों में घुस कर इन्हे बेघर कर दिया और हमारी जबान में ये अवारा हो गये !!! बेजुबान क्यो ? धरती पर ऐसा कोइ जीव नही है जिसकी कोइ भाषा न हो ये अलग बात है कि हमने अग्रेजी पड़ने में इतना वक्त  जाया किया कि इनकी बेह्तरीन बोलियो से महरूम हो गये कोइ बात नही पर ये बेजुबान कैसे ! हम तो इतनी भाषाओं के धनी होने के बावजूद बेजुबानों की तरह अपनी जबान हिंदी के लिये लड़ते आये है पर हमें बेजुबान समझ कर कभी फ़ारसी तो कभी अंग्रेजी रटाई गयी और दुनिया की मेज पर हमें अगर कोइ बात कहनी होती है तो हम बेजुबानों की तरह या तो कुछ बोल नही पाते या फिर उन्ही की भाषा मे रिरियाने लगते है वाह क्या बात है .पर जब ये जानवर सदियों से अपनी अपनी बोली बोलते आ रहे है जिन मे लेशमात्र परिवर्तन हुआ हो शायद तब इन्हे हम बेजुबान कहते है अपनी अक्षमता के बजाय ...................!!

यहां मै किसी भाषा की बुराई नही कर रहा हूं आग्ल और फ़ारसी में दुनिया का बेह्तरीन साहित्य विग्यान भूगोल आदि आदि लिखा गया पर क्या हमने अपनी जुबान में ऐसे प्रयास किये ?
यहां मेरी अखबार और मीडिया के लोगों से गुजारिस है कि जबान वालों की जबान समझनें की कोशिश करे और प्रकृति में उनके सुन्दर गीतॊं को सुनने की कोशिश यकीन मानिये दुनिया के बेह्तरीन संगीत और गीत इस गीत के आगे फ़ीके पड़ जायेगे और धीरे धीरे आप इनकी बात समझने भी लगेगे ।

कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन

मोहल्ला


कल की बात है मैं घर मे बैठा एक आगुन्तक से बाते कर रहा था की फ़तिमा और छबीली ने भौकना शुरू ए किया चुकिं इन दोनों की मोहल्लें में अतिक्रमण कर रहे H1 N1 (जैसा की आम चर्चा में है बेचारे जीव को लोग क्या बना डालते है) से रोज़ की झिक्क झाय है इसी कारण मैने कुछ खास तवज्जो नही दी कुछ देर बाद आदमी कहे जाने वाले जीव ने भिनभिनाना शुरू ए किया तो मेरे कान खड़े हो गये भाई मामला स्वजाति का था आज काल हिन्दुस्तान मे तो सरकारें इसी जाति वाले फ़ैक्टर पर बनती बिगड़ती है खैर मैं आनुवंशिक स्वजाति की बात कर रहा हूं डार्विन वाली पर यह जातिवाद भी बहुत खतरनाक है इसी वज़ह से तो हमारे प्लेनेट पर विलुप्त रेयर, एन्डैन्जर्ड, एक्सटिन्क्सन जैसे शब्द और समस्यायें अवतरित हुई खैर मैं भिनभिनानें की बात कर रहा था घर से बाहर निकला तो कोइ २० से २५ आदमी औरत सड़क पर थे और एक और निहार रहे थे सहमे से जैसे किसी बाघ ने रास्ता रोक रखा हो कुछ मनुष्य अट्टालिकाओं पर विराजमान होकर कौतूहल टाईप की भावभंगिमा प्रकट कर रहे थे जब मैं वहां पहुंचा तो माजरा संगीन और कष्ट्कारी था एक गाय तार में फ़ंसी हुई सड़क पर अचेत पड़ी थी लोग तमाशबीन थे ऐसा है मेरा मोहल्ला और मेरा ही नही यह तो मेरे पूरे देश की नियति है यदि अपवादों को छोड़ दिया जाये यहां जब कोई महात्मा या भगत सिंह अपना जीवन समर्पित कर देता है कोई चन्द्रशेखर अपने प्राणों की आहुति देता है और कोई अशफ़ाक, विस्मिल या राजनरायन फ़ासी पर झूल जाता है तब इस देश के लोगों की आखें नम होती है और तभी ज्वार भांटा जो कुछ कह ले आप आता है और ये भेड़ बकरियों की तरह चल देते है किला फ़तह करने बसर्ते सर कटवाने वाला मजबूत आदमी आगे आगे हो, ऐसे है हमारे मोहल्लें!!
गाय पीड़ा से कराह रही थी लोग बाग खुद तो जड़ थे यदि मै आगे बढ़ने की कोशिश करता तो मुझे रोकते अरे बिजली है कोइ चिल्लाता डिश (केबल) है अरे केबल है तो इतनी देर से क्या पिक्चर देख रहे थे सड़क पर दौड़ कर छुड़ाया क्यो नही मैने शायद ऐसा ही कुछ अपने मन में कहां !! तभी मुझे एक लड़का नज़र आया जिसके हाथ में बेंत (ड्ण्डा) था वह पोलिओ से पीड़ित था सो मैने उसके हाथ से ड्ण्डा लिया पर तब तक उसे निहारता रहा जब तक मुझे ये विश्वास नही हो गया कि वह अपनी दोनों टांगों पर कुछ देर खड़ा हो लेने में सक्षम है फ़िर डरते हुए बिजली या केबल (अभी यह रहस्य है) के तार को डण्डे से खीचने की कोशिश करने लगा कुछ कुछ यह जानते हुए कि इससे कुछ नही होने वाला आदमी एक जगह जड़्वत खडे़ अभी भी भिनभिना रहे थे तभी एक व्यक्ति उपस्थित हुआ मोहल्ले का ही जो बिजली विभाग में कार्यरत है प्लास के साथ और झट से तार को काट दिया गाय उठ खड़ी हुई मै मुस्करा उठा इस बेह्तरीन स्टंट पर जो मानवीय था अब आदमी और भन्नाने लगे किसका तार है किस के घर गया है केबल है केबल है तब उस आदमी ने जिस ने रक्षा की उस गाय की तार को लोगो की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा लो केबल है तो हाथ में लेकर देख लो अब आदम झटके से पीछे हटे दूर करो ! दूर रहॊ !! ऐसा है मुहल्ला और मेरे मुहल्ले के लोग एक छोटी सी जगह की नियत और व्यवहार बहुत व्यापक तौर पर उस देश या इलाके के लक्षणों को उजागर करता है ।
उस व्यक्ति को धन्यवाद और किस्सा आगे बढाता हूं

कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन