Wednesday, November 11, 2009

"हिन्दी के प्रति उनकी चिन्ता मात्र उनका रोज़गार है"



भैया हिन्दी का विकास ऐसे नही होगा आप सब का भले हो जाये !
"कही ऐसा तो नही है कि हिन्दीकारों की हिन्दी के प्रति उनकी चिन्ता मात्र उनका रोज़गार है"

ब्लाग पर हिन्दी की धूम देखकर ह्रदय पुलकित हो उठता है । किन्तु एक डर हमेशा मुहं बाये खड़ा है ? कि यदि गूगल ने या अन्य मुफ़्त की सेवायें देने वाली साइटस जो हिन्दी ब्लागिग की सुविधा दे रही है कही उन्होने अपनी पालिशी में फ़ेरबदल दिया तो क्या होगा ! आप कह सकते हो कि ब्लाग को सुरक्षित रखने के तमाम तरीके है .जैसे.........एच टी एम एल कोड को सेव कर लेना आदि-आदि पर क्या ये मुनासिब हल है इस समस्या का ! फ़िर क्या होगा इन पोस्ट्स का और चटकाकारी का !!
आज हम आदी हो चुके है हिन्दी ब्लागिग के और उन तमाम सुविधाओं के जो ये वेबसाइट हमें प्रदान कर रही है !
कोई यहां अपना हिन्दी गुबार निकाल रहा है कोई अपने पन्थ का प्रचार प्रसार ! ब्लाग्स पर आप को सभी इज्म मिल जायेगें और सभी तरह के इज़्मकार भी फ़ुलझड़िया छोड़ते हुए ।
वही कुछ बेहतरीन ब्लोग्स हिन्दी में दुर्लभ नालेज को संकलित किये हुए है जो हमारे समाज के लिये जरूरी है।
यहां तक कि जो जानकारी हिन्दी की किताबों में अभी तक उपलब्ध नही है वह सब ब्लाग पर आप पढ़ सकते हो, लोगो की दिन रात की मेहनत, जो कीबोर्ड पर उंगलियों के जिमनास्टिक का नतीजा है

एक लिखने की बेहतर आदत ! पर क्या हमारा पूर्ण अधिकार है हमारी इस मेहनत पर ?

क्या हम स्वतंत्र राष्ट्र के स्वतंत्र ब्लागर्स है ? क्या यह अन्तरजाल जहां हिन्दी लहरा रही है विशाल तंरगों में !
क्या हमने अपना कोई हिन्दी वर्जन वाला आपरेटिग सिस्टम बना पाये या बनवा पाये जैसा कि चाइना व अन्य देशो ने मजबूर कर दिया दुनिया की बड़ी कम्पनी को कि वह चाइनीज OS बनाये !

क्या हमने कोई वेबसर्वेर स्थापित किया जो सिर्फ़ हमारी हिन्दी चिठठाकारी को सजों सके ?


क्या हमने  ब्लाग्स की  कोई वार्षिकी प्रकाशित की जो इस असीम विग्यान व ज्ञान को वर्चुअल दुनिया के अलावा भौतिक रूप से हमारे समक्ष प्रस्तुत कर सके व उन लोगो के समक्ष भी जो कम्प्यूटर का इस्तेमाल नही जानते या नही करते ?


क्या हम दुनिया के तमाम साहित्य या यूं कह ले की अपने भारतीय साहित्य, इतिहास, भूगोल, विग्यान को हिन्दी में ढ़ाल पाये

ब्लाग पर रिरियाने, चिल्लाने, और दहाड़ने से कुछ नही होगा सब आये एक साथ और सार्थक पहल करे मै जानता हूं सब सक्षम है इन सब बातॊं के लिये और ब्लागर्स अपना पूर्ण सहयोग देगे हिन्दी के इस सघर्ष में 

भाषा वही समृद्ध व विकसित होती है जिसमें सारे संसार का सार हो ।..................................अन्यथा बातों व व्याखानों से कुछ नही होता ।


कहा सुना माफ़ करियेगा 


आप का
कॄष्ण कुमार मिश्र
मैनहन-२६२७२७
भारतवर्ष

क्या भारत एक राष्ट्र है ?


शब्द के मायने और उसके गुण-दोष परिस्थित और काल के अनुसार बदलते रहते है अब सोचना आप को है कि इस शब्द का इस्तेमाल कैसे और कहां करना है ?
उपमहाद्वीप,. हिन्दुस्तान,......... भारत, राष्ट्र,. गणराज्य, देश
देशद्रोहियों की सजाये सुनिश्चित की जाय


अभी हाल में चाइना ने इसी तरह कुछ कहा था कि भारत कोई राष्ट्र जैसी चीज नही, या वह यह कहना चाहता है कि भारत एक तरफ़ हिमालय से घिरा और तीन तरफ़ से समुन्दर से घिरा सिर्फ़ एक भूभाग है , जहां भाषाई तौर पर अलग-अलग टुकड़ें राज्य कहलाते है और इन जगहों पर तमाम संस्कृति, धर्म के लोग रहते है जो रोज आपस मे लड़ते है सिर्फ़ इस लिये कि उनकी ज़बान इलाहिदा है, धर्म जुदा-ज़ुदा है। उनके म़सायल अलग-अलग है !

 इस जमीन के टुकड़ों को सियासिती तौर पर  अग्रेज हुक्मरानों ने एक कर इण्डिया बना या ! और बापू  ने इस मुल्क को भावनात्यामक तौर से जोड़कर भारत बनाया । सियासत ने हमें भौगोलिक सीमाओं के भीतर समेट कर एक कर दिया किन्तु क्या हम "अनेकता में एकता" वाले सूत्र में गुथ पाये ?

महाराष्ट्र में जो हुआ, भाषा के नाम पर, वह क्या बेहूदा संदेश देना चाह्ता है,  दुनिया को । या दक्षिणपंथी, वामपंथी या फ़िर नक्सलवादी किस बात की लड़ाई लड़ रहे है इस राष्ट्र से, कभी मन्दिर के नाम तो कभी संस्कृति के नाम, सर्वहारा के नाम पर, जायज मुद्दों पर सरकार से लड़ाई तो समझ आती है पर राष्ट्र से लड़ाई लड़ना ,,,,,,,,,,,,,देश की अखण्डता, गौरव, सुरक्षा और संस्कृति को क्षति पहुचाना किस तरह की क्रान्ति का परिचायक है! 

आज राजनीति और राजनेता जिस तरह की गैरजिम्मेदाराना हरकते कर रहे हैं उनके लिये एक और प्रियदर्शिनी इन्दिरा की जरूरत, ताकि इन्हे इनकी राष्ट्रदोही गतिविधियों का सबक मिल सके, मै इमरजेन्सी या तानाशाही का समर्थक नही हूं लेकिन जब बात राष्ट्र की अखण्डता और उसकी संस्कृति पर कुठराघात की आये तो सज़ा सुनिश्चित होनी चाहिये!, और शासक को निरूकुंश  होना चाहिये !


हमारे मुल्क तमाम सिरफ़िरे लोग आयातित विचारधारा का चोला पहने घूम रहे है जो गरीबी, भुखमरी, और समानता की सवेंदनशील बाते करते है मशाले लेकर क्रान्ति की बात करते है पर क्या उन्होने अपने दामन को कायदे से निहारा है कि इन तमाम वर्षों में उनकी क्या उपलब्धता रही सिवाय इसके "कि भारत के खुशग़वार मौसम में भी छाता लगा लेने के यदि बीजिंग या मास्को में पानी बरस रहा हो तो ।"

और कुछ ऐसा ही है उन कथित राष्ट्रभक्तो के लिये जो दम भरते है विशुद्ध भारतीयता और इसके दर्शन का कभी-कभी तो वही अपने आप को भारतीय मानते है और सब कूड़ा-करकट, झाड़ू लगाने की बेहूदी बात भी कर देते है सियासी मैदानों में! अब इनकी भी देशभक्ति सुन लीजिये, जब आजादी की लड़ाई  में भारत हर खास ओ आम आदमी उस नेक-माहौल में अपना - अपना योगदान दे रहा था तब ये सब अग्रेजों की मुखबरी और बापू की हत्या करने के प्रयास में तल्लीन थे ! मुल्क आज़ाद हुआ तो ये सब जमीदारों-राजाओं के एजेन्ट बन कर उनकी रियासतॊं को बचाने में लग गये, उसमे विफ़ल हुए तो जनता पर क्रूरता और जोर-जबरदस्ती से शाशन करने वाले इन अग्रेजी एजेन्टों का पेन्शन-भत्ता ही बच जाय इसकी पुरजोर कोशिश .............किन्तु विफ़लता ही लगी इन कथित ...................को.............


विचारधारा को हथकण्डा बनाकर राजनीति करने वालों ने तो इस देश की जमीन पर अपने-अपने टुकड़ों का नक्शा भी ख़ीच लिया और सशस्त्र लड़ाईयां भी जारी है। पर सियासत दा जो सरकार में है वो भी किसी तरह पांच साल गुजारना चाहते है बिना किसी विवाद के और इस ख्वाइस के साथ कि आने वाले पांच साल भी हमारे हो जाय ।




इस मुल्क में तो राष्ट्रभक्तों पर गीत लिखने वाले व्यक्ति भी सुरक्षित नही रहे  एक पूर्व राजा ने  जिसकी  पीढ़ियां सियासत में आज भी राजा का दर्जा हासिल किये है, ने कविता की उन लाइन्स को खारिज़ करने की बात कही जिनमे उनके पुरखो के देशद्रोही होने का जिक्र था कवियत्री नही मानी तो उनका रोड-एक्सिडेन्ट करा दिया जाता है??????

तमाम सियासत दां के सफ़ेद चेहरों के पीछे छिपी है काली रात की भयानक करतूते किन्तु वों धरती के देवता का ओहदा प्राप्त किये लाल-बत्तियों वाले रथों में विराजमान  होकर देश की छाती पर मूंग दल रहे है बिना किसी डर या शर्म के ।

भारत सरकार को ऐसे "anarchists" ????????को राज्य-सत्ता की अस्मिता पर हमला बोलने के जुर्म में सजा-ए-मौत देना सुनिश्चित करे -----------इससे कम बिल्कुल नही ! यह राज्य का अधिकार भी है और दायित्व भी !


यदि सरकार अपने दायित्वों का निर्वहन सही ढ़ग से नही करती तो उसके खिलाफ़ आवाज उठाना यकीनन उचित है इसे आप "Anarchist Revolt" नाम दे सकते है महात्मा गांधी को भी ब्रिटिश सरकार कभी-कभी इसी शब्द से नवाजती थी ।




कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन-२६२७२७
भारतवर्ष