Monday, January 4, 2010

आज सुहेली ठहर गयी थी

KK Mishra at Tiger Haven
Originally uploaded by manhan2009



03-01-2010---आज़ सुहेली नदी की जल धारा शिथिल हो गयी थी, जंगल मुरझा गये थे, पक्षियों का चहकना बन्द हो गया था, जंगल के जानवर मानों कही गायब हो गये थे........बिल्कुल ऐसा ही मंजर था टाइगर हावेन का, ये वो जगह है जिसे सारी दुनिया जानती है। भारत-नेपाल सीमा पर घने जंगलों में स्थित ये जगह जो रिहाइशगाह थी तेन्दुओं, बाघों और उनके संरक्षक बिली अर्जन सिंह की। जहां कभी बाघ और तेन्दुए दहाड़ते थे, हज़ारों पक्षी यहां के खेतों में बोई फ़सलों से दाना चुगते और प्रकृति की धुन में गाते, सुहेली की जलधारा अपने घुमावदार किनारों से होकर कुछ यूं गुजरती थी कि आप उस सौन्दर्य से मुग्ध हो जाते। लेकिन आज सबकुछ शान्त और बोझिल सा था!


क्यों कि अब वह जंगलों का चितेरा कभी न खत्म होने वाली निंद्रा में है। जिसने इन सब को एक स्वरूप दिया था किसी चित्रकार की तरह।और इस रचनाकार की यह अदभुत रचना मानो जैसे अपने रचने वाले के साथ ही नष्ट हो जाना चाहती हो!

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इस अन्तर्राष्ट्रीय शख्सियत बिली अर्जन सिंह ने ब्रिटिश-भारतीय सेना का दामन छोड़ खीरी के विशाल जंगलों को अपना मुस्तकबिल बना लिया और उसे एक खूबसूरत अंजाम भी दिया, जिसे आज हम दुधवा नेशनल पार्क के नाम से जानते है। शुरूवाती दिनों में पलिया से सम्पूर्णानगर जाने वाली सड़क पर अपने पिता जसवीर सिंह के नाम पर एक फ़ार्म हाउस का निर्माण किया, और खेती को अपना जरिया बनाया। कभी शिकारी रह चुके बिली जब एक दिन अपनी हथिनी पर सवार हो जंगल में दाखिल हुए तो सुहेली और नेवरा नदियों के मध्य भाग को देखकर स्तब्ध रह गये, अतुलनीय प्राकृतिक सौन्दर्य से आच्छादित थी ये धरती जिसके चारो तरफ़ शाखू के विस्तारित वन। यही वह घड़ी थी जिसने टाइगर हावेन के प्रादुर्भाव का निश्चय कर दिया था ।

सन १९६९ ई० में यह जंगल बिली ने खरीद लिया, जिसके दक्षिण-उत्तर में सरितायें और पश्चिम-पूर्व में घने वन।


इसी स्थान पर रह कर इन्होंने दुधवा के जंगलों की अवैतनिक वन्य-जीव प्रतिपालक की तरह सेवा की, फ़िर इन्दिरा सरकार में बिली के प्रयास सार्थक होने लगे। नार्थ खीरी के जंगल संरक्षित क्षेत्र का दर्ज़ा पा गये और बिली सरकार की तरफ़ से अवैतनिक वन्य-जीव प्रतिपालक बनाये गये।


अर्जन सिंह के निरन्तर प्रयासों से सन १९७७ में दुधवा नेशनल पार्क बना और फ़िर टाइगर प्रोजेक्ट की शुरूवात हुई, और इस प्रोजेक्ट के तहत सन १९८८ में दुधवा नेशनल पार्क और किशनपुर वन्य जीव विहार मिलाकर दुधवा ताइगर रिजर्व की स्थापना कर दी गयी। टाइगर हावेन से सटे सठियाना रेन्ज के जंगलों में बारहसिंहा के आवास है जिसे संरक्षित करवाने में बिली का योगदान विस्मरणीय है।


जंगल को अपनी संपत्ति की तरह स्नेह करने वाले इस व्यक्ति ने अविवाहित रहकर अपना पूरा जीवन इन जंगलों और उनमें रहने वाले जानवरों के लिए समर्पित कर दिया।


टाइगर हावेन की अपनी एक विशेषता थी कि यहां तेन्दुए, कुत्ते और बाघ एक साथ खेलते थे। बिली की एक कुतिया जिसे वह इली के नाम से बुलाते थे, यह कुतिया कुछ मज़दूरों के साथ भटक कर टाइगर हावेन की तरफ़ आ गयी थी, बीमार और विस्मित! बिली ने इसे अपने पास रख लिया, यह कुतिया बिली के तेन्दुओं जूलिएट और हैरियट पर अपना हुक्म चलाती थी और यह जानवर जिसका प्राकृतिक शिकार है कुत्ता इस कुतिया की संरक्षता स्वीकारते थे । और इससे भी अदभुत बात है, तारा का यहां होना जो बाघिन थी, बाघ जो अपने क्षेत्र में किसी दूसरे बाघ की उपस्थित को बर्दाश्त नही कर सकता, तेन्दुए की तो मज़ाल ही क्या। किन्तु बिली के इस घर में ये तीनों परस्पर विरोधी प्रजातियां जिस समन्वय व प्रेम के साथ रहती थी, उससे प्रकृति के नियम बदलते नज़र आ रहे थे।


विश्व प्रकृति निधि की संस्थापक ट्रस्टी व वन्य-जीव विशेषज्ञ श्रीमती एन राइट ने बिली को पहला तेन्दुआ शावक दिया, ये शावक अपनी मां को किसी शिकारी की वजह से खो चुका था, लेकिन श्रीमती राइट ने इसके अनाथ होने की नियति को बदल दिया, बिली को सौप कर।


बिली को श्रीमती इन्दिरा गांधी के द्वारा दो तेन्दुए प्राप्त कराये गये जिनका नाम जूलिएट और हैरिएट था। बाद में तारा नाम की बाघिन का बसेरा बना टाइगर हावेन। फ़िसिंग कैट, रीह्सस मंकी, भेड़िया, हाथी और न जाने कितने जीव इस जगह को अपना बसेरा बनायें हुए थे। और इन सभी बिली से एक गहरा रिस्ता था जो मानवीय रिस्तों के सिंद्धान्तों और उनकी गन्दगियों बिल्कुल जुदा था। इन रिस्तों को नियति या प्रकृति ने तय किया था।



आज बिली की इच्छा के मुताबिक उनका अन्तिम संस्कार उसी जगह पर किया गया जहां इली, जूलिएट और प्रिन्स को दफ़नाया गया था। इस जगह से कुच दूरी पर अर्जन सिंह की मां मैबेल का भी अन्तिम संस्कार किया गया था। मैने जब श्रीराम (बिली के ड्राइबर या यूं कहूं कि परिवार का सदस्य) से पूंछा कि बिली साहब की अस्थियां प्रयाग राज ले जायेंगें या कही और, तो जवाब आया साहब सुहेली है न, इससे साहब को बहुत प्रेम था।

श्रीराम ने ही बताया कि बिली की मां की अस्थियां भी सुहेली में प्रवाहित की गयी थी।


जगदीश उर्फ़ हपलू जिसके नाना जैक्सन नें बिली के बाघ और तेन्दुओं को पालने में अपना पूरा जीवन लगाया था, जब बात की तो...............टाइगर मैन की इच्छा थी कि जब मर जाऊ तो किसी बाघ के आगे डाल देना कम से कम उसका पेट भर जायेगा!


पदम भूषण, पदम श्री, कपूरथला रियासत के कुंअर बिली अर्जन सिंह आज अकेले सोये हुए थे चिर निंद्रा में वहां कोई मौजूद था तो सिर्फ़ उनके नौकर जिनके आंखे अश्रुधारा छोड़ रही थी और चेहरों पर शोक के सारे चिन्ह शक्लों को बेरौनक किए जा रहे थे। इनके अलावा अगर कोई था तो वनधिकारी, कर्मचारी और स्थानीय लोग।

इतनी बड़ी शखसियत लेकिन आंसू बहाने वाला अपना कोई नही। लेकिन यकीन मानिए जो लोग थे वही उनके थे ! जसवीर नगर से जब बिली को अन्तिम विदाई दी गयी तो वन-विभाग गार्ड आफ़ आनर देकर बिली से अपने लम्बे व गहरे रिस्तों का कर्ज़ चुका दिया। खीरी जनपद के लोगों और वन-विभाग ने इस अन्तर्राष्ट्रीय शख्सियत को सम्मान जनक विदाई दी ।

किन्तु अफ़सोस इस बात का है कि प्रदेश सरकार और देश की इन्तज़ामियां की तरफ़ से अब-तक कोई सरकारी शोक संदेश जारी नही हुआ। बात सिर्फ़ बिली अर्जन सिंह की नही है, बात हमारे उन हीरोज़ की जो अपना जीवन समर्पित करते है राष्ट्र सेवा में, फ़िर वह समर्पण चाहे देश की सुरक्षा का हो या पर्यावरण की रक्षा का, यदि हम उन्हे सम्मान नही देगे तो पीढ़िया क्या सबक लेगी, और कौन चलेगा इन दुरूह पथों पर जहां कागज़ के टुकड़ों पर सम्मान लिख कर दे दिया जाता है बस पूरी हो गयी जिम्मेदारी। जब कभी जरूरत पड़ी जनता को दिशा देने की तो आदर्श स्थापित करने के लिए हेरोज़ को इतिहास की किताबों में तलाशा जाता है...............



दो वर्षों से आ रही भयानक बाढ़ ने दुधवा के वनों व टाइगर हावेन को क्षतिग्रस्त करना शुरू कर दिया है यदि जल्दी कोई हल न निकाला गया तो बिली का यह घर जो अब स्मारक है हम सब के लिए के साथ-साथ हमारी अमूल्य प्राकृतिक संपदा भी नष्ट हो जायेगी।

बिली अर्जन सिंह के संघर्षों का नतीज़ा है दुधवा टाइगर रिजर्व और टाइगर हावेन, और इन दोनों को सहेजना अब हमारी जिम्मेदारी।