Saturday, January 2, 2010

आनरेरी टाइगर का निधन


Billy Arjan Singh
Originally uploaded by manhan2009

2010 का पहला दिन भारत ही नही दुनिया के वन्य जीव संरक्षण जगत के लिए सबसे दुखद रहा- पदम भूषण बिली अर्जन सिंह का रात नौ बजे ह्रदयघात से निधन हो गया। और इसी के साथ ढह गया एक विशाल स्तम्भ जिसने भारत में वन्य जीव संरक्षण की एक बेमिशाल मुहिम चलाई। टाइगर प्रोजेक्ट और खीरी की विशाल वन श्रंखला को संरक्षित क्षेत्र का दर्ज़ा बिली अर्जन सिंह के प्रयासों से ही हासिल हो सका।
बिली अर्जन सिंह से मेरी पहली मुलाकात सन १९९९ ई में हुई, इसी वक्त मैने जन्तुविज्ञान में एम०एससी० करने की बाद वन्य जीवों पर पी०एचडी० करने का निर्णय किया । बिली से मैं अपने परिचय का श्रेय दुधवा के प्रथम निदेशक रामलखन सिंह को दूंगा, क्यों कि इन्ही कि एक आलोचनात्मक पुस्तक "दुधवा के बाघों में आनुवंशिक प्रदूषण" पढ़ने के बाद हुई।
और पहली मुलाकात में बिली से इस पुस्तक की चर्चा की तो उन्होने ने कहा क्या तुमने मेरी किताबें नही पढ़ी।

और स्वंम बरामदे से लाइब्रेरी तक जाते और तमाम पुस्तके लाते और फ़िर कहते देखों यह पढ़ॊ। फ़िर ये सिलसिला अनवरत जारी रहा, मुझसे वो हमेशा कहते कि मिश्रा जब तक भ्रष्ट प्रशासन-शासन से लड़ाई नही लड़ोगे तब तक कुछ नही होने वाला। मैं उनसे कहता आप से मुलाकात बहुत देर में हुई, क्योंकि मेरा आगमन ही धरती पर देर में हुआ और आप के स्वर्णिम संघर्ष के दिनों को नही देख पाया। तो उनका जवाब था कुछ भी देर नही हुई, तुम यहां आ जाओं मेरे साथ रहो लखीमपुर दुधवा से बहुत दूर है। मैंने नौकरी का बहाना बनाया तो झट से कहा कि ट्रान्सफ़र करवा लो यहां।
यहां एक जिक्र बहुत जरूरी हो जाता है, दुधवा के उपनिदेशक पी०पी० सिंह जिनका दुधवा के जंगलों से काफ़ी लम्बा रिस्ता रहा एक उप-निदेशक के तौर पर और बिली साहब से नज़दीकियां भी। मुझे एक रोज़ पी०पी० सिंह ने बताया कि बिली ने उनसे कहा था कि पिनाकी तुम मुझे सठियाना(दुधवा टाइगर रिजर्व की रेन्ज) में थोड़ी जगह दे देना मेरे मरने के बाद, मेरी कब्र के लिए। बिली का टाइगर हावेन सठियाना रेन्ज से सटा हुआ है और यह वन क्षेत्र बारहसिंघा के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। अर्जन सिंह ने इन्ही बारहसिंहा व बाघों को के लिए इस वन को संरक्षित कराने की सफ़ल लड़ाई लड़ी।
कानून इसकी इज़ाजत नही देता लेकिन हालातों के मुताबिक हमेशा कानून में गुंजाइश की जाती रही है। क्या बिली को दो-चार गज़ जमीन उनके प्रिय सठियाना में नही मिल सकती जिसके लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया।
बिली की तेन्दुओं व बाघों के साथ तमाम फ़िल्में बनाई गयी जिनका प्रसारण डिस्कवरी  आदि पर होता रहता है।
बिली अर्जन सिंह को पहली बार मैने लखीमपुर महोत्सव में बुलाया और उन्हॊंने शिरकत भी की, जबकि जनपद में कभी किसी कार्यक्रम में वे कभी नही शामिल हुए। मैं रात में जब पहुंचा टाइगर हावेन तो सभी ने कहा कि आप का प्रयास सार्थक नही होगा। किन्तु बिली साहब मान गये मुझे डाटने के बाद, उनके शब्द थे कि क्या लखीमपुर ले जाकर मेरी कब्र खोदना चाहते हो" वह बीमार रहते थे लेकिन महोत्सव वाले दिन वह अपने कहे गये वक्त पर आ गये, मैने एक टाई लगा रखी थी जिस पर बाघ बना हुआ था, बिली साहब मेरी टाई पकड़ कर खीचने लगे, मैं उनका मंतब्य समझ गया था, कि आनरेरी टाइगर का मन इस बाघ-टाई पर आ गया है, मैने बड़े सम्मान से वह टाई बिली साहब को पहना दी, यह मेरी तुच्छ भेट थी उनको। इस कार्यक्रम में पार्क के निदेशक एम० पी० सिंह  व उपनिदेशक पी०पी० सिंह व दुधवा टाइगर रिजर्व के तमाम लोगों ने शिरकत कर कार्यक्रम का मान बढ़ाया। इसकी वीडियों मैं यहा प्रस्तुत कर रहा हूं।
प्रिन्स, जूलिएट, हैरिएट तीन तेन्दुए थे जिन्हे बिली ने टाइगर हावेन में प्रशिक्षित किया और दुधवा के जंगलों में सफ़लता पूर्वक पुनर्वासित किया। तारा नाम की बाघिन जिसे वह इंग्लैन्ड के ट्राइ-क्रास जू से लाये थे जब वह शावक थी उसका अदभुत प्रशिक्षण फ़िल्मों व फ़ोटोग्राफ़्स में अतुलनीय है, तारा के पुनर्वासन में बिली साहब क विवादित भी होना पड़ा, क्योंकि उनकी इस बाघिन पर तमाम लोगों के मारने के आरोप लगे, और इसे आदमखोर साबित कर मार दिया गया। किन्तु बिली अन्त तक इस बात को नही स्वीकार पाये।
आज दुधवा में बिली द्वारा पुनर्वासित किए गयी बाघिन व तेन्दुओं की नस्ले फ़ल-फ़ूल रही है।

मैंने बिली साहब की किताबों से दुधवा के अतीत को देखा सुना, और यही से मैने बिली को अपना आदर्श मान लिया, नतीजा ये हुआ कि मैं एक शोधार्थी से एक्टीविस्ट बन गया, अब उन वन्य-जीवों के लिए लड़ाई लड़ता हूं जिन्हे इस मुल्क की नागरिकता नही हासिल है, क्योंकि लोकतंत्र में वोट देने वाला ही नागरिक माना जाता है।

बिली ने मुझसे एक दिन कहा था कि उनके पिता जसवीर सिंह लखनऊ के पहले भारतीय डिप्टी कमिश्नर हुए।
मेरे लिए ये एकदम नयी जानकारी थी।

आज मैं इतना जरूर कहूंगा कि दुधवा टाइगर रिजर्व जो कर्मस्थली थी बिली की उसका नाम बिली अर्जन सिंह टाइगर रिजर्व कर दिया जाय और यही हमारी सच्ची श्रद्धाजंली होगी बिली साहब को।

क्योंकि जब एक अंग्रेज यानी जिम कार्बेट के नाम पर आज़ाद भारत में हेली नेशनल पार्क  तब्दील होकर जिम कार्बेट नेशनल पार्क हो सकता है तो बिली अर्जन सिंह के नाम से क्यों नही।

भारत में वन्य जीव संरक्षण में और खासतौर से बाघ संरक्षण के क्षेत्र में बिली अर्जन सिंह के कद का कोई व्यक्ति न तो कभी हुआ और न ही मौजूदा समय में है।
कुंवर अर्जन सिंह कपूरथला रियासत के शाही परिवार से ताल्लुक रखते थे, इनका जन्म १५ अगस्त सन १९१७ को गोरखपुर में हुआ। और इनका बिली नाम इनकी आन्टी राजकुमारी अमृत कौर ने किया।

बिली के पिता जसवीर सिंह, दादा राजा हरनाम सिंह, परदादा महाराजा रन्धीर सिंह थे जिन्हों ने सन १८३० से लेकर सन १८ ७०ई० तक कपूरथला पर स्वंतंत्र राज्य किया। महाराजा रंधीर सिंह को गदर के दौरान अंग्रेजों की मदद करने के कारण खीरी और बहराइच में तकरीबन ७०० मील की जमीन रिवार्ड में मिली थी।

बिली का बचपन बलराम पुर के जंगलों में गुजरा, इनके पिता को अंग्रेजी हुकूमत ने बलराम पुर रियासत का विशिष्ठ प्रबन्धक नियुक्त किया। बिली ने यही १४ वर्ष की उम्र मे बाघ का शिकार किया। हाकी, क्रिकेट और शिकार इनके प्रिय खेल हुआ करते थे किन्तु बाद में जिम कार्बेट की तरह इनका ह्रदय परिवर्तन हुआ, और यही से इन्होंने शुरुवात की वन्य जीव संरक्षण की।

बिली ब्रिटिश-भारतीय सेना में भी रहे द्वतीय विश्वयुद्ध के दौरान। सेना की नौकरी छोड़ने के बाद अर्जन सिंह पहली बार एक ३० अप्रैल सन १९४५ को आये। अपने पिता के नाम पर इन्होंने जसवीर नगर नाम का फ़ार्म बनाया। जंगल भ्रमण के दौरान सुहेली नदी के किनारे घने जंगलों के मध्य एक सुन्दर स्थान को अपने नये निवास के लिए चुना और यही वह जगह थी जहां बिली ने बाघ और तेन्दुओं के साथ विश्व प्रसिद्ध प्रयोग किए। यानी बाघ और तेन्दुओं के शावकों को ट्रेंड कर उनके प्राकृतिक आवास में भेजना।

बिली को पदम श्री, पदम भूषण, पाल गेटी, विश्व प्रकृति निधि से स्वर्ण पदक और कई लाइफ़ टाइम एचीवमेंट पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

भारत की तत्कालीन प्रधान मन्त्री श्रीमती गांधी का विशेष सहयोग मिला इन्हे अपने प्रयोगों में और नतीजतन उत्तर खीरी के जंगल को दुधवा टाइगर रिजर्व बनाया गया और बिली को उसका अवैतनिक वन्य-जीव प्रतिपालक।
बिली की नज़र से इन जंगलों और इनमें रहने वाली प्रकृति की सुन्दर कृतियों को देखने और जानने का बेहतर तरीका है उनकी किताबे जिनके शब्द उनके अदभुत व साहासिक कर्मों का प्रतिफ़ल है।

बिली अर्जन सिंह के द्वारा लिखित विश्व प्रसिद्ध किताबें।

१-तारा- ए टाइग्रेस

२-टाइगर हावेन

३-प्रिन्स आफ़ कैट्स

४-द लीजेन्ड आफ़ द मैन-ईटर

५-इली एन्ड बिग कैट्स

६-ए टाइगर स्टोरी

७-वाचिंग इंडियाज वाइल्ड लाइफ़

८-टाइगर! टाइगर!


कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन-खीरी, दुधवा टाइगर रिजर्व