Friday, October 23, 2009

350 से ज्यादा नही, बिल्कुल नही !!!


पृथ्वी बचाओं नही तो खुद नही बचोगे- फ़ैसला आप के हाथ
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जलवायु परिवर्तन के जो भयवह संकेत हमे मिल रहे है उसे देखते हुये दुनियाभर के जल्वायु वैग्यानिकों ने २४ अक्टूबर सन २००९ को "इंटरनेशनल डे आफ़ क्लाइमेट एक्सन" मना रहे है जिसमे उन्होने पूरी दुनिया के लोगों को साझा करने के लिये आवाहित किया है ताकि दुनिया की तमाम सरकारों पर इसका जोरदार असर पड़े जो जिम्मेदार है ग्लोबल वर्मिंग के कारण होने वाली जलवायु परिवर्तन के,
 क्योकि इसी दिन यूनाईटेड नेशन्स की स्थापना हुई थी


इस दिवस का मुख्य चिन्ह या लोगो ३५० रख गया है क्यो कि पर्यावरण में CO2 की सांन्द्रता 350 ppm से अधिक नही होनी चाहिये और यदि ऐसा होता है तो ग्लेशियर पिघलने लगते है तापमान बढ़ता है और जंगल सूखने लगते है जैसा कि हमारी धरती पर हो रहा है क्योकि इस वक्त CO2 की सांद्रता 390ppm है यानी CO2 का एक हिस्सा प्रत्येक मिलियन एटमास्फ़ियर में, यही वज़ह है की २४ अक्टूबर २००९ यह कार्यक्रम किया जा रहा है ताकि दिसम्बर २००९ को यूनाइटेड नेशन्स की अगली बैठक जलवायु संबधी मसलों पर होगी जहां 350 की गतिविधियों को दुनिया भर से आये नेताओं के समक्ष प्रस्तुत किया जा सके और इन राजनेताओं के मन-मस्तिष्क पर कुछ प्रभाव छोड़ा जाय ऐसी आशा की जा रही है ।

यहां यह बताना जरूरी है कि 350 के कान्सेप्ट की शुरूवात अमेरिकन लेखक  बिल मेककिबेन ने की इन्होने ग्लोबल वर्मिग पर विश्व प्रसिद्ध पुस्तक लिखी और सन २००७ मे तमाम राज्यों मे कार्बन को सन २०५० तक ८० फ़ीसदी कम करने का एलान जिसमे उस समय सीनेटर बराक ओबामा ने भी इस बेहतरीन सोच की सराहना की  ।
२४ तारीख को दुनिआ की तमाम मीडिया, राजनेता, NGOs, सरकारी सगंठनॊं से अनुरोध किया जा रहा है की पृथ्वी ग्रह को और मानव जाति को यदि विनाश से बचाना है तो 350 वाले कान्सेप्ट पर जल्द विचार कर कार्बन के स्तर को सामान्य किया जाय नही तो विनाश निश्चित है !
क्योकि सामान्य स्तर में कार्बन को हमारे वृक्ष अवशोसित कर शुद्ध प्राणवायु में तब्दील कर देते है ।
मै यह मानता हूं कि यदि हर व्यक्ति समाज व देश अपने अपने पर्यावरण को स्वच्छ रख ले तो धीरे-धीरे पूरी धरती का वायुमण्ड्ल स्वच्छ हो जायेगा किन्तु हम इस जिम्मेवारी का निर्वाह पूरी ईमानदारी से करे ।
जीवाश्म ईधंन का प्रयोग आधुनिक तरीके से करे जिसमे कार्बन का उत्सर्जन कम हो अपने वाहन व कारखानों से निकलने वाले धुएं में कार्बन का प्रतिशत कम करने वाले उपकरणों को दुरूस्त रखे और सरकार भी इन नियमों का पालन कराने के लिये दृढ सकंल्प बने, हम वृक्ष लगाये नदियों को स्वच्छ रखे और ऐसा कोइ काम न करे जो हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुचाता हो तो मुझे यकीन है कि स्थितियों में सुधार खुद ब खुद होता जायेगा !!!
चलो कल हम सभी अपने आस-पास के लोगों को इस बावत बतायें, स्कूलों, में बच्चों से रैलियां निकलवायें और अपने-अपने प्रतिष्ठानों व सगंठनों में गोष्ठी कर समस्या के समाधान निकाले और इस २४ तारीख की इन गतिविधियों से सरकार और नेताओं को अवगत कराये कि यह बहुत जरुरी है ।

हांलाकि इस तरह के दिवस मनाने की जो परंपरा है वह सिर्फ़ इसी दिन तक सीमित रह जाती है और तमाम तरह के कार्यक्रम तो सिर्फ़ सरकारि फ़ाइलों तक ही सीमित रह जाती है जैसे अभी महात्मा गांधी के विचार पर "joy of giving week" पिछले महीने भारत सरकार ने मनाया जिसकी जानकारी शायद किसी को नही है !!

अच्छे विचार और अच्छ गतिविधियां ही धर्म है और इसे संस्कार के तौर पर अपनाना चहिये तभी कल्याण संभव है जैसे हमारे यहां बच्चों को हिदायत दी जाती है कि जल पवित्र है इसे दूषित करना पाप है या फ़िर जीव हत्या पाप....नदी मां समान है ---------- आदि-------- आदि।

 मालद्वीप के राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने अपने कैबिनेट की मीटिंग समुंद्र की गहराईयों में की ताकि दुनिया देख
सके कि ग्लेशियर पिघलने पर उनका देश दुनिया के नक्शे से मिटकर समुंद्र की गहराईयों में समा जायेगा।


भारत के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश और ISRO के चेयरमैन जी० माधवन ने अतंरिक्ष भवन बैगलौर में बैठक की और दो सेटेलाइट सन २०१० व २०११ में छोड़ने की बात कही जो ग्रीन हाउस गैसों का अध्ययन करेगीं और २०१० में एक और माइक्रो-सेटेलाइट छोड़ने की भी तैयारी है जो aerosols  यानी गैस में जहरीले कणों की सांद्रता का पता लगायेगी । 


कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन-२६२७२७
भारतवर्ष

1 comment:

शरद कोकास said...

प्रतीकों मे बात कहने का अपना महत्व है । यह प्रतीक पढ़े लिखे भी समझते है और जो नही है वे भी बल्कि वे लोग ज़्यादा अच्छी तरह समझते है क्योंकि प्रतीक लोक जीवन से जुडे है । लेकिन य्हाँ पढ़े लिखे लोगो को यह समझने के आवश्यकता अधिक है क्योंकि पर्यावरण क नुकसान वे ही ज़्यादा कर रहे है । कार्बंडाय ऑक्साइद उत्सर्जित करने मे जितनी शहरी आबादी की भूमिका है उतनी ग्रामीण आबादी की नही अत: संकेतिक हे सही यह चेतावनी है । अब हमे चेत जाना ज़रूरी है वरना इसका परिणाम भुगतने के लिये तैयार रहना चाहिये । लेकिने ऐसी नौबत आये ही क्यों ?