Thursday, October 2, 2008

हमसे पूछों मिज़ाज़ बारिस का हम जो कच्चे मकान वाले हैं


लखीमपुर खीरी सितम्बर की बेतहाशा बारिस ने धरती के बाशिन्दों को प्राकृतिक आपातकाल का एहसास करा ही दिया और जिसका अन्जाम इन्सान से ज्यादा जानवरों को भुगतना पड़ा इस आपातकाल की वजह कुदरत थी पर आपातकाल के नतीज़े इन्सान की गैर जिम्मेदाराना करतूतें जिसका खामियाजा कुदरत के सभी जीवो को भुगतना पड़ रहा है ये एक ऐसा विशाल चिठ्ठा है जिसे बाकायदा मै बयां न कर सकूं पर कोशिश जरूर करूगा.............

बारिस जिसकी जरूरत इस तपती धरती को थी इसके तालाबों, नदियों, जंगलों, खेतों, बगीचों और इन सब जगहों में रहने वाले तमाम जीव जिन्हे बिना पानी के अपना वजूद ज्यादा दिनों तक बानाये रखने में मुश्किलात आ रही थी उन्हे राहत तो मिल जानी थी पर इन्ही सब में से एक जिसे इंसान यानी आदम के नाम से जाना जाता है ने धरती को रस्के जिना होने मे रुकावट पैदा कर दी जिसकी इसे सख्त जरूरत थी

खीरी जनपद तराई क्षेत्र का विशाल जल स्रोतों वाला भूभाग है जहां दर्जनों नदियां जीवन धारा बनकर सदियों से बहती आ रही है यहां घाघरा, शारदा, गोमती जैसी विशाल जलधाराओं वाली महानदियां है तो पिरई, जम्हुहारी, सरायं, उल्ल, जौहरा, सुहेली और कठना जैसी छोटी जलधाराओं वाली सरितायें है जो यहां के वनों और फ़सलों को न जाने कब से सिंचित करती रही है पर अब उनका अस्तित्व लगातार मिटता जा रहा है वजह पहाड़ों पर वनों के नष्ट होने के कारण आती सिल्ट नदियों के किनारें अतिक्रमण और उनमे बहता औद्दोगिक कचड़ा और बारिस का कम होना ...........................................................................लेकिन इस बारिस के बावजूद भी इन्सानियत वछिंत रह गई इसके फ़ायदों से बल्कि नुकसान ज्यादा उठाना पड़ा वजह साफ़ नदियों में सिल्ट भर जाने से नदियों का छिछला होना इनके किनारों पर खेती जिससे नदियों के मुहाने संकरे होते जाना जिससे पानी नदियों मे बहने के बजाय इनसे बाहर आकर मानव आबादी में घुसता है और फ़िर हाय तौबा मचती है बाढ़ के नाम पर .................. शहरों और गावों में पोखरों, तालाबों, और विशाल जलाशयों जिनमें बरसात के पानी को अपने में समा लेने की क्षमता होती थी वे अब विलुप्त हो गये है कारण इन पर अवैध कब्जें...............जाहिर अब यह पानी हमारे घरों में भरता है और हम चिल्लाते है कि................फ़िर इस पर राजनीति होती है.................समाज सेवा भी ...............पर नतीजा सिफ़ड़............................इसका इलाज है बस हम अनियोजित विकास करना बंद कर दे और प्रकृति के मुताबिक सोचे और फिर सुनियोजित ढ़ग से पहल करे...........

अब इकबाल का सेर मुझे बेमानी लगता है............

गोदी में खेलती है जिसके हजार नदियां गुलशन है जिन के दम से रस्के जिऩा हमारा॥।

कृष्ण कुमार मिश्र
लखीमपुर खीरी