Saturday, September 6, 2008

रेल पथ पर हुई एक और बाघ की मौत - दोषी कौन ?


५/६ सितम्बर २००८ की रात को दुधवा टाइगर रिजर्व से होकर गुजरने वाले रेल पथ पर एक और जी्व की मौत हो गई इस जीव को भारतीय वन्य जीव अधिनियम मे से्ड्युल वन मे रखा गय है और पूरी दुनिया इस नायाब जानवर को बचाने मे अपन सहयोग दे रही है इसे हिन्दु मन्यताओं में दे्वी दुर्गा का वाहन माना गया है तो जिम कार्बे्ट जैसे शिकारी ने इसे बिग हरटेड जेनटल मैन कहा, भारत ही नही पूरी दुनिया कुदरत की इस बेह्तरीन कृति की एक झलक पाने को लालायित रहती है और यह पारिस्थिति्की तन्त्र के सर्वोच्च स्थान पर विराजमान जीव उस तन्त्र के सन्तुलन और सवंर्धन मे अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर्ता है शिकार करने के पूर्व इसकी शान्त मन: स्थित और शिकार के वक्त इसका विकराल रूप हमें शिव अर्थात रुद्र का अहसास कराता है जैसे विनाश के पूर्व की शान्ति !॒! तो इसे आप जंगल का कुशल कूतिनीतिक चाणक्य भी कह सकते है ये जन्गल में जीवों का शिकार भी करता है और उनकी वृ्द्धि और संरक्षण में भी सहायक है ये जंगल का रक्षक भी है और इसकी शक्ति एवं सुन्दरता का जिक्र मै शब्दो में तो कर ही नही सकता जिसे आप स्वमं महसूस कर सकते हो किसी अभयारण्य मे इसे देखकर ! टाइगर ! टाइगर !

किन्तु अब ये अपने घरो से बेदखल किये जा रहे है मानव जाति के स्वार्थों के कारण जंगलों कॊ खॆतिहर जमीनों में तब्दील कर या मानव आबादी बसा कर या फिर शिकार ऐसे तमाम कृत्य है मानव जाति के जिनका पूरा पूरा बयान करना मेरे लिये मुश्किल है पर मानव जाति को इतना तो मालूम ही होना चाहिये और शायद पता भी है कि प्रकृति के साथ उनका मौजूदा बर्ताव वैसे ही है जैसे जिस डाल पर हम बैठे हो और उसी को काट रहे हो !!

हां अब सरकार को भी ये तय कर लेना पडेगा कि उसे किसके हितो को प्राथमि्कता देनी है और किसे प्राथमिकता देने से दोनों यानि मनु्ष्य और अन्य जीवों को लाभ पहुंचेगा खाली प्रोजे्क्ट बना देने से और कागज़ों पर तसवीरें छापनें से इन वन्य जीवों को हम नही बचा पायेगे और अगर ये नही होगे तो हम अपने वजूद को भी न समझे इस ग्रह पर यह निश्चित है।

दुधवा टाइगर रिजर्व मे आये दिन कोइ न कोइ वन्य जीव इन बेलगाम और वन्य जीव अधिनियम के सारे नियमोम को ताक पर रखकर चलने वाली रेलगाड़ियों से टकराकर मरता है और थोड़ा बहुत हल्ला मचने के बाद सब कु्छ फिर जस का तस आखिर कोइ तो विकल्प होगा कि आइन्दा से कोइ निरीह वन्य जीव मानव जनित कारणों से न मरे ! बीती रात एक नर बाघ गोंडा पलिया रेलमार्ग पर मझरा पूरब के आस-पास तेजगति से आती हुइ ट्रेन से टकरा कर छत-विछत हो गया उसके शरीर के तमाम अंग गायब हो गये सूत्र बताते है कि यह जवान बाघ शायद ट्रेन से टकराने के बाद मीलों पटरियों और ट्रेन के मध्य फंसकर घिसटा है नतीजतन इसके सारे अंग भंग हो गये ।
अब ये सुनिश्चित होना चाहिये कि हम या तो बाघ बचाये या अभयरण्यों से होकर गुजरने वाले रेलपथों पर ट्रेन चलाये खासबात यह है कि इन जंगलों में ये रेलपथ ब्रिटिश हुकूमत में लकड़ी कटान के लिये बिछाये गये थे और अब इन्हे अगर उखाड़ भी दिया जाय तो कोई खास फर्क नही पड़ने वाला न तो भारतीया रेल विभाग के रेवेन्यू पर और न ही यातायात पर क्यो कि तमाम अन्य विकल्प मौजूद है साथ ही वन्य जीवों कि अमूल्य कीमत के वनस्पति रेल मार्ग को विस्थापित करना अधिक आसान है और सस्ता है जिससे हम अपने इस अमूल्य वन्य संपदा को बचा सकते है
यहां मै एक सुझाव देना चाहूगा कि ट्रेन के इंजन के अगले हिस्से में एक मुलायम रबड़ य प्लास्टिक का चौकोर वाइपर नुमा टुकड़ा लगा सकते है जिससे चलती ट्रेन के आगे जो भी जीव आयेगा वह उस मुलायम वस्तु से टकराकर पटरियों से अलग किनारे हट जायेगा और उसे कोइ नुकसान भी नही होगा इसके साथ साथ ट्रेन की गति जंगली इलाको में सख्ती के साथ सुनश्चित करनी होगी और उसका पालन हो रहा है या नही इस बात का भी ध्यान रखना पड़ेगा क्यो कि दुधवा अभयारण्य से गुजरती ये ट्रेनें धड़धड़ाती हुई गति निर्धारण के सभी नियमों की खिल्ली उड़ाती वन्य जीवों को कुचलती हुई चलती है जिनमे सिर्फ़ कुछ मामले ही प्रकाश मे आते है !

अंत मे एक बात और ट्रेन जैसी विशाल और गर्जना करने वाली वस्तु से ये जंगल का राजा कैसे टकरा जाता है क्यो कि ट्रेन के आने से मीलो पहले पटरिया झनझनाने लगती है नजदीक आते आते ट्रेन की आवाज़ की गर्जना बढ़ती है साथ में रात मे तेज़ रोशनी करने वाली हेड लाइट और हार्न की आवाज़ क्या ये अति संवेदनशील जीव इन सब को नही भांप पाते साथ ही ब्रिटिश इण्डिया मे ये ट्रेने इन्ही रेलपथो से गुजरती थी तब ये जंगल और घने थे जाहिर है बाघ तेन्दुआ हाथी आदि जानवरों की तादाद भी ज्यादा थी फिर ये घटनाये क्यो नही घटती थी जैसा कि आज घट रही है एक बात और कि हमारे दुधवा के बाघों का इस रेल पथ से तकरीबन १०० साल पुराना रिश्ता है हाँ इन हाथियों के साथ जो घटनाए दुधवा में घटी उन्हें तो एक्सीडेंट माना जा सकता है क्यो कि दुधवा में आज से लगभग १०० वर्ष पहले ही हाथियों ने अलविदा कह दिया था और तब इस जंगल में से होकर रेल भी नही गुजराती थी आज जो भी जंगली हाथी दुधवा आते है वो नेपाल के है और मालुम हो कि नेपाल में रेलवे नही है और वहां के जंगली जीव रेल से परिचित नही है शायद इसी लिए ये हाथी अपने जैसे भीमकाय रेल इंजन को देखकर भी पटरियों से नही हटते होगे खैर इन बेशकीमती वन्य जीवों की मौत के पीछे कोई रहस्य तो नही छुपा है !!!!!!

कृष्ण कुमार मिश्र
लखीमपुर खीरी
९४५१९२५९९७