Friday, September 19, 2008

खीरी मे चन्दन की तस्करी

खीरी जनपद उत्तर प्रदेश जो अपनी वन्य संपदा के लिये पूरी दुनिया में जाना जाता है और इस अमूल्य संपदा पर डाका भी अपने ही डाल रहे है बस कुछ् रुपयों के लालच में !! वन विभाग के सूत्रों से ग्यात हुआ कि इस निकृष्ट काम को अंजाम देने वाले पांच व्यक्तियों को हिरासत में लिया गया है ये लोग उत्तर खीरी वन प्रभाग के मटेरा जंगल के पास ७० किलोग्राम चन्दन की लकड़ी के साथ हिरासत में लिये गये है सूत्र बताते है कि यह लोग कन्नोज के व्यापारियों से संपर्क बनाये हुए है मालूम हो कि कन्नौज पूरे एशिया में सुगंधित इत्र बनाने की जगह के रूप में मशहूर है।
ऐसा पहली बार नही हुआ है खीरी जनपद में चन्दन की अवैध तस्करी लगातार जारी है निर्बाध रूप से और शर्मनाक इस लिये क्योकि यहां पुलिस कप्तान के निवास से भी चन्दन के पेड़ काट लिये गये थे और शहरी क्षेत्र में लोगों के घरों और सरकरी आवसों से भी बचे हुये वृक्ष नदारद हो रहे और वन विभाग के कानून और शासन व्यवस्था कोइ माकूल हल निकाल पाये हो या निकाल रहे हो ऐसा नही मालूम होता !!!

जनपद में सरकारी लंबरदारों को चाहिये कि वह चन्दन व अन्य अमूल्य एवं विलुप्त हो रही औसधीय प्रजातियों के इलाकों को चिन्हित करे जहाँ ये बची हुई है और वहां वन गस्ती दल की सक्रियता सुनश्चित करे साथ ही स्थानीय जनमानस को जागरूक कर पर्यावरण संरक्षण में उनकी सहभागिता भी सुनश्चित करे और उन्हे अपनी राष्ट्रीय प्राकृतिक संपदा के सजग प्रहरी बनने की प्रेरणा दे और इस सब के लिये अफ़सरों को अपनी तानाशाही प्रवृति छोड़कर लोकतान्त्रिक भावना का प्रदुर्भाव करना पड़ेगा !! क्या यह संभव नही है ?

चन्दन और इसकी विशेषतायें
चन्दन( सेन्टालम अलबम ) सेन्टालेसी फ़ैमिली का वृक्ष है भारत में अतीत से इस प्रवित्र वृक्ष का पौराणिक एवं औशधीय महत्व रहा है हिन्दू सभ्यता में लोग इस वृक्ष की लकडी के बुरादे का लेप मस्तक पर लगाते है यह शीतलता प्रदान करने वाला और सिर दर्द में लाभकारी है साथ ही इससे प्राप्त तेल का प्रयोग इत्र बनाने में होता है जो पूरी दुनिया में पसन्द किया जाता है और इसके इसी व्यवसायिक महत्व के चलते इस प्राजाति की तस्करी लगातार बढ़ रही है। इसके तेल से प्राप्त रसायन अल्फ़ा सन्टालाल और बीटा सन्टालाल जो इसकी खुसबू और औशधीय गुणों के लिये जिम्मेदार है इससे मिलती जुलती प्राजाति अमीरिस बालसमिफ़ेरा है जो चन्दन होने का एहसास दिलाता है पर इस प्राजाति में वह गुण नही है जो चन्दन में होते है।

कृष्ण कुमार मिश्र
लखीमपुर खीरी
९४५१९२५९९७


Friday, September 12, 2008

एक अदभुत कवक


एक नायाब रत्न भारतीया जैव विविधिता का
१० तारीख २००८ सुबह मुझे खेरी जनपद के मितौली ब्लाक से एक रिपोर्टर ने फ़ोन किया की उसने वहां कोई अजीब चीज देखी है मामला पृकृति से संबंधित था सो मैंने कैमरा उठाया और चल दिया उस गाँव जहाँ ग्रामीण जमीन से निकले शिव लिंग नुमा आकृति से घबराए हुए थे इस वस्तु से सड़े मांस की गंध आ रही थी जाहिर है तमाम मक्खियाँ इस पर भिनभिना रही थी ख़ास बात ये कि ये लिंग नुमा आकृति एक नही कई थी जो सफ़ेद अंडाकार गुल्लियों से निकल रही थी ग्रामीणों ने इन्हे एक घेरे में सुरक्षित कर लिया था और लोग इसे देखने के लिए मज़मा लगाये हुए थे जब मै वहां पहुँचा तो एक महिला विस्मयकारी दृष्टी से इसे निहार रही थी मेरी नज़र ज्यों ही इस वस्तु पर पड़ी मै मंत्र मुग्ध होकर इसे निहारता ही रहा इतनी खूबसूरती मैंने इस प्रकार कि चीज़ में कभी नही देखी थी कच्ची दीवार की नींव में गोल गोल अंडाकार रचनाओं से लिंग नुमा सफ़ेद व् लाल रंग की रचनाये स्फुटित हो रही थी
हकीकत में यह एक कवक था जिसे अंग्रेज़ी में फंगी या फंगस कहते है पर था तो यह एक मशरूम ही या फ़िर अखाद्य मशरूम जिसे गाँव में लोग कुकरमुत्ता कहते है ही की प्रजाति जीवविज्ञानी होने के नाते मैंने अपने अध्ययन के दौरान इस तरह की फंगस के बारे में नही पढ़ा था और अपनी जंगल यात्राओं में भी कभी नही देखा था हाँ जब मुझे अँगुलियों सदृस तेज गंध वाली संरचनाओं के बारे में बताया गया था तो एकबारगी मेरे मन आया की हो न हो ये डेड मैन्स फिंगर फंगस हो सकता है पर वह दिखने में बदसूरत होता है मैंने वहां कुछ तस्वीरें ली और लखीमपुर आकर इंटरनेट खंगालना शुरू किया साथ ही अपने पुस्तकालय की पुस्तके खंगाली नतीजा सामने ये आया की ये तो स्टिंक हार्न फंगस है यानी सींघ नुमा बदबूदार फंगस इसका वैज्ञानिक नाम म्युतिनस बैम्बुसिनस है इसकी तमाम प्रजातीयाँ है जो रंग व् आकार प्रकार में बहुत मिलाती जुलती है एक और प्रजाति है डेविल्स दिप्स्तिक जो काफ़ी समानता रखती है म्युतिनस बम्बुसिनस से, बहुत ऊहापोह के पश्चात् मैंने इसे कई वैज्ञानिक संस्थानों को भेजा साथ ही दिल्ली में आई आर जी संगठन के वैज्ञानिक डाक्टर कृष्ण कुमार को भी तस्वीर के साथ सूचित किया
इतनी मेहनत का कारण बताता चलू आप को की एक कुकरमुत्ते के पीछे क्यो भागा ये आदमी इसकी वजह है की अभी तक यह प्रजाति भारत में दर्ज नही की गई शायद यह पहली खोज होगी म्युतिनस बम्बुसिनस की अपने मुल्क में दूसरी वजह ये की जब तक हम अपने आस पास की चीजो को ध्यान से नही जांचे परखे गे तो उनके गुण दोषों की जानकारी प्राप्त नही होगी और बिना जानकारी के हम इन सब से होने वाले लाभों से वांछित रह जायेगे एक और बड़ी वजह है की जब अमेरिका हल्दी या नीम पेटेंट कराने की बात करता है तो हम हल्ला मचाते है और हमारी कोई नही सुनता इसके पीछे यही वजह है की हम अपने प्राकृतिक खजाने को अनदेखा करते चले आ रहे है न तो हम इसका अध्ययन करते है और न ही इसे सरकारी और गैरसरकारी संस्थानों में दर्ज करते है नतीजा ये होता है हमारी संपदा पर जब कोई डाका डालता है तो हमारे पास उस चीज़ को अपना कहने का और दूसरो को यह मनवाने का कोई सबूत नही होता, भारत की अतुल्य जैव विविधिता का अध्ययन और संरक्षण निहायत जरूरी है क्यो की दुनिया में हमसे कही अधिक मेहनती और दिमागदार लोग है जो हमें हमारी ही चीजों से वांछित कर देने की माद्दा रखते है, हमें उनसे आगे निकलना है|

कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन लखीमपुर खेरी
9451925997

Saturday, September 6, 2008

रेल पथ पर हुई एक और बाघ की मौत - दोषी कौन ?


५/६ सितम्बर २००८ की रात को दुधवा टाइगर रिजर्व से होकर गुजरने वाले रेल पथ पर एक और जी्व की मौत हो गई इस जीव को भारतीय वन्य जीव अधिनियम मे से्ड्युल वन मे रखा गय है और पूरी दुनिया इस नायाब जानवर को बचाने मे अपन सहयोग दे रही है इसे हिन्दु मन्यताओं में दे्वी दुर्गा का वाहन माना गया है तो जिम कार्बे्ट जैसे शिकारी ने इसे बिग हरटेड जेनटल मैन कहा, भारत ही नही पूरी दुनिया कुदरत की इस बेह्तरीन कृति की एक झलक पाने को लालायित रहती है और यह पारिस्थिति्की तन्त्र के सर्वोच्च स्थान पर विराजमान जीव उस तन्त्र के सन्तुलन और सवंर्धन मे अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर्ता है शिकार करने के पूर्व इसकी शान्त मन: स्थित और शिकार के वक्त इसका विकराल रूप हमें शिव अर्थात रुद्र का अहसास कराता है जैसे विनाश के पूर्व की शान्ति !॒! तो इसे आप जंगल का कुशल कूतिनीतिक चाणक्य भी कह सकते है ये जन्गल में जीवों का शिकार भी करता है और उनकी वृ्द्धि और संरक्षण में भी सहायक है ये जंगल का रक्षक भी है और इसकी शक्ति एवं सुन्दरता का जिक्र मै शब्दो में तो कर ही नही सकता जिसे आप स्वमं महसूस कर सकते हो किसी अभयारण्य मे इसे देखकर ! टाइगर ! टाइगर !

किन्तु अब ये अपने घरो से बेदखल किये जा रहे है मानव जाति के स्वार्थों के कारण जंगलों कॊ खॆतिहर जमीनों में तब्दील कर या मानव आबादी बसा कर या फिर शिकार ऐसे तमाम कृत्य है मानव जाति के जिनका पूरा पूरा बयान करना मेरे लिये मुश्किल है पर मानव जाति को इतना तो मालूम ही होना चाहिये और शायद पता भी है कि प्रकृति के साथ उनका मौजूदा बर्ताव वैसे ही है जैसे जिस डाल पर हम बैठे हो और उसी को काट रहे हो !!

हां अब सरकार को भी ये तय कर लेना पडेगा कि उसे किसके हितो को प्राथमि्कता देनी है और किसे प्राथमिकता देने से दोनों यानि मनु्ष्य और अन्य जीवों को लाभ पहुंचेगा खाली प्रोजे्क्ट बना देने से और कागज़ों पर तसवीरें छापनें से इन वन्य जीवों को हम नही बचा पायेगे और अगर ये नही होगे तो हम अपने वजूद को भी न समझे इस ग्रह पर यह निश्चित है।

दुधवा टाइगर रिजर्व मे आये दिन कोइ न कोइ वन्य जीव इन बेलगाम और वन्य जीव अधिनियम के सारे नियमोम को ताक पर रखकर चलने वाली रेलगाड़ियों से टकराकर मरता है और थोड़ा बहुत हल्ला मचने के बाद सब कु्छ फिर जस का तस आखिर कोइ तो विकल्प होगा कि आइन्दा से कोइ निरीह वन्य जीव मानव जनित कारणों से न मरे ! बीती रात एक नर बाघ गोंडा पलिया रेलमार्ग पर मझरा पूरब के आस-पास तेजगति से आती हुइ ट्रेन से टकरा कर छत-विछत हो गया उसके शरीर के तमाम अंग गायब हो गये सूत्र बताते है कि यह जवान बाघ शायद ट्रेन से टकराने के बाद मीलों पटरियों और ट्रेन के मध्य फंसकर घिसटा है नतीजतन इसके सारे अंग भंग हो गये ।
अब ये सुनिश्चित होना चाहिये कि हम या तो बाघ बचाये या अभयरण्यों से होकर गुजरने वाले रेलपथों पर ट्रेन चलाये खासबात यह है कि इन जंगलों में ये रेलपथ ब्रिटिश हुकूमत में लकड़ी कटान के लिये बिछाये गये थे और अब इन्हे अगर उखाड़ भी दिया जाय तो कोई खास फर्क नही पड़ने वाला न तो भारतीया रेल विभाग के रेवेन्यू पर और न ही यातायात पर क्यो कि तमाम अन्य विकल्प मौजूद है साथ ही वन्य जीवों कि अमूल्य कीमत के वनस्पति रेल मार्ग को विस्थापित करना अधिक आसान है और सस्ता है जिससे हम अपने इस अमूल्य वन्य संपदा को बचा सकते है
यहां मै एक सुझाव देना चाहूगा कि ट्रेन के इंजन के अगले हिस्से में एक मुलायम रबड़ य प्लास्टिक का चौकोर वाइपर नुमा टुकड़ा लगा सकते है जिससे चलती ट्रेन के आगे जो भी जीव आयेगा वह उस मुलायम वस्तु से टकराकर पटरियों से अलग किनारे हट जायेगा और उसे कोइ नुकसान भी नही होगा इसके साथ साथ ट्रेन की गति जंगली इलाको में सख्ती के साथ सुनश्चित करनी होगी और उसका पालन हो रहा है या नही इस बात का भी ध्यान रखना पड़ेगा क्यो कि दुधवा अभयारण्य से गुजरती ये ट्रेनें धड़धड़ाती हुई गति निर्धारण के सभी नियमों की खिल्ली उड़ाती वन्य जीवों को कुचलती हुई चलती है जिनमे सिर्फ़ कुछ मामले ही प्रकाश मे आते है !

अंत मे एक बात और ट्रेन जैसी विशाल और गर्जना करने वाली वस्तु से ये जंगल का राजा कैसे टकरा जाता है क्यो कि ट्रेन के आने से मीलो पहले पटरिया झनझनाने लगती है नजदीक आते आते ट्रेन की आवाज़ की गर्जना बढ़ती है साथ में रात मे तेज़ रोशनी करने वाली हेड लाइट और हार्न की आवाज़ क्या ये अति संवेदनशील जीव इन सब को नही भांप पाते साथ ही ब्रिटिश इण्डिया मे ये ट्रेने इन्ही रेलपथो से गुजरती थी तब ये जंगल और घने थे जाहिर है बाघ तेन्दुआ हाथी आदि जानवरों की तादाद भी ज्यादा थी फिर ये घटनाये क्यो नही घटती थी जैसा कि आज घट रही है एक बात और कि हमारे दुधवा के बाघों का इस रेल पथ से तकरीबन १०० साल पुराना रिश्ता है हाँ इन हाथियों के साथ जो घटनाए दुधवा में घटी उन्हें तो एक्सीडेंट माना जा सकता है क्यो कि दुधवा में आज से लगभग १०० वर्ष पहले ही हाथियों ने अलविदा कह दिया था और तब इस जंगल में से होकर रेल भी नही गुजराती थी आज जो भी जंगली हाथी दुधवा आते है वो नेपाल के है और मालुम हो कि नेपाल में रेलवे नही है और वहां के जंगली जीव रेल से परिचित नही है शायद इसी लिए ये हाथी अपने जैसे भीमकाय रेल इंजन को देखकर भी पटरियों से नही हटते होगे खैर इन बेशकीमती वन्य जीवों की मौत के पीछे कोई रहस्य तो नही छुपा है !!!!!!

कृष्ण कुमार मिश्र
लखीमपुर खीरी
९४५१९२५९९७