Saturday, August 11, 2012

गंतव्य- लखीमपुर से जयपुर तक....

कृष्ण के क्षेत्र में:

इस बार वैसा नही हुआ जैसा हमेशा होता था, हम चले थे उन इलाकों के लिए जहां कदम के वृक्ष एवं उनके फ़लो की सुगन्ध, मोर की आवाज का अनजाना सा आकर्षण, यानि-मथुरा-भरतपुर की वह भूमि जो मौजूदा वक्त में दो इलाहिदा प्रान्तों में है, किन्तु धरती का कोई अपना परिसीमन नही होता, इसे तो हम करते है।

दिल्ली-आगरा, फ़रूखाबाद और जयपुर तक का भूभाग लगभग एक सा है, वनस्पति, जीव-जन्तु की विविधिता भी करीब करीब एक सी है। हमेशा मैं लखीमपुर से चलकर भरतपुर या जयपुर जब जाता तो मेरा गतंव्य होता लखीमपुर-पीलीभीत-बरेली-बदायूं-हाथरस-मथुरा-भरतपुर और फ़िर जयपुर....इन रास्तों पर चलने के भी तमाम कारण रहे...एक लखीमपुर से पीलीभीत तक घने जंगलों से होकर गुजरने का आनंद, फ़िर आमिर खुसरों की जन्मभूमि बदायूं, फ़िर कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा का अध्यातमिक एहसास लिए राजस्थान की सीमा में प्रवेश करता। यहां गौरतलबबात यह है, कि सबसे पहली बार इन रास्तों पर मैं २००१ में गुजरा, भरतपुर के केवलादेव नेशनल पार्क में बाम्बे नेचुरल सोसाइटी द्वारा आयोजित एक वर्कशॉप में, इसी वर्कशाप में आई०बी०सी०एन० की शुरूवात हुई और शुरूवाती न्यूजलेटर प्रसारित किया गया।

किन्तु इस बार हम शाहजहांपुर- फ़रूखाबाद- आगरा होते हुए भरतपुर पहुंचे। इस बार केवलादेव में आधा दिन व्यतीत करने के बाद जयपुर में जवाहर कला केन्द्र गया, इस सांस्कृतिक स्थल में मैं दूसरी बार गया।
कुछ तस्वीरे प्रस्तुत कर रहा हूं-----






कृष्ण कुमार मिश्र