Monday, October 17, 2011

जब सूरज भी खिलखिला उठा !

एक बड़ा सा सरकारी सरोवर जो बनाया गया है एक प्राकृतिक विशाल तालाब में कई टुकड़ों में इसे बांट कर इसकी सरहदे तय कर दी गयी हैं, ताकि ठेकेदारों को उन टुकड़ों को बेचा जा सके, और जलीय जीवों का व्यापार हो सके, किन्तु प्रकृति अपना स्वरूप तलाश ही लेती है, उसे कितना भी बिगाड़ा जाए... उन टुकड़ों में कमल भी खिल आये है और कुमदनियां भी, सरहदों पर बेहया, और मदार के खूबसूरत पुष्प भी, जल में नारी और जल-कुम्भी भी फ़ूल रही है...और इन पुष्पों पर मड़रा रहे है सतरंगी जीव.... और इसी जगह पर यह सूरज भी खिलखिला उठा उस वक्त जब मैं इन खि्ली हुई ज़िन्दगियों की इस सुन्दरता को उतारने की कोशिश कर रहा था.

.कृष्ण कुमार मिश्र




सभी तस्वीरें सर्वाधिकार सुरक्षित
© कृष्ण कुमार मिश्र


7 comments:

Unknown said...
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Unknown said...

बहुत सुंदर कृष्ण ... !

सदैव की भांति सभी चित्र मनोहर.... बेशरमा के फूल बचपन से मुझे भी बहुत आकर्षित किया करते थे। वनस्पति विज्ञान की इस आरम्भिक पाठशाला में सहज कौतूहल भी होता था ..

क्षमा करें मैं आपकी तरह वैज्ञानिक नाम नहीं जानता।

:)

Dudhwa Live said...

मिश्र जी वैज्ञानिक नाम देकर मैं लेख में नीरसता नही लाना चहता था, फ़िर यहां अपनी भाषा, अपनी बात और अपनी जैव-संपदा की बात अपने लहजें में कहना चाह रहा हूं न कि वैज्ञानिक शोध-पत्र जो अंग्रेजी में अन्तराष्ट्रीय मानको के अनुरूप प्रदर्शन, शोध में भी यह जरूरी नही कि वह अन्तराष्ट्रीय मानकों की भेड़ चाल हों ऐसा मेरा मानना सदैव रहा है, साथ ही हम अपने ज्ञान को उनके लिए उनकी भाषा में क्यों लिखे, ताकि वे बिना मेहनत किए हम भेड़ चाल जनता के बेहतरीन पारम्परिक व रचनात्मक ज्ञान का फ़ायदा लन्दन व वाशिंगटन डी सी में बैठ कर आराम से लेते रहे ! कदापि नही, उन्हे हमसे कुछ चाहिए तो मेहनत करे जैसे कभी उनके पूर्वजों ने की हमारे प्राचीन ग्रन्थों व जनता में प्रचलित पारंपरिक ज्ञान का अनुवाद किया वियाबान भारत के हर कोने में जाकर, खैर आप तो हिन्दी भाषा में मेरे इन भावों के रस अवश्य समझें होगे फ़िर भी आप को और अपनी याददाश्त को मजबूत करते हुए आंग्ल भाषा में कथित वैज्ञानिक नाम बताता हूं..मदार (calotropis procera), बेशरमा या बेहया(Ipomia carnea ), जल-कुम्भी (Eichhornia crassipes), कमल (Nelumbo nucifera), कमलनियां या गुजरी (Nymphaea ????), नारी (Ipomia aquatica).

शुक्रिया
कृष्ण

Dudhwa Live said...

वैसे मेरा बस चले तो मैं इन वैज्ञानिक नामों के जगह अपने गांव जेवार और अपने पूर्वजों के नाम से चिन्हित करू....

कविता रावत said...

किन्तु प्रकृति अपना स्वरूप तलाश ही लेती है, उसे कितना भी बिगाड़ा जाए....
ekdam sateek baat...
bahut hi manmohak tasveeren..
mujhe bhi prakriti se bahut prem hai... jab kabhi prakriti ke nikat hoti hun to usmine man sukun ke do pal talashne lagta hai..

SANDEEP PANWAR said...

आपने लेख में बिल्कुल सही बताया है

Anonymous said...

prakriti se judi kahaniya pasand haimujhe isme sithilata aur
sant bhav ko anubhav karne me anand ata hai. ye bina bole hi
sab kuchh kah jati hai.