Monday, October 17, 2011

जब सूरज भी खिलखिला उठा !

एक बड़ा सा सरकारी सरोवर जो बनाया गया है एक प्राकृतिक विशाल तालाब में कई टुकड़ों में इसे बांट कर इसकी सरहदे तय कर दी गयी हैं, ताकि ठेकेदारों को उन टुकड़ों को बेचा जा सके, और जलीय जीवों का व्यापार हो सके, किन्तु प्रकृति अपना स्वरूप तलाश ही लेती है, उसे कितना भी बिगाड़ा जाए... उन टुकड़ों में कमल भी खिल आये है और कुमदनियां भी, सरहदों पर बेहया, और मदार के खूबसूरत पुष्प भी, जल में नारी और जल-कुम्भी भी फ़ूल रही है...और इन पुष्पों पर मड़रा रहे है सतरंगी जीव.... और इसी जगह पर यह सूरज भी खिलखिला उठा उस वक्त जब मैं इन खि्ली हुई ज़िन्दगियों की इस सुन्दरता को उतारने की कोशिश कर रहा था.

.कृष्ण कुमार मिश्र




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© कृष्ण कुमार मिश्र