Monday, October 26, 2009

जानवर है बेहाल राम तेरे देश में !!

अत्याचारी मानव
यहां मैं एनीमल राईट की बात नही करूगा क्योंकि हमारे मुल्क  में कानून गरीब और कमजोर पर  लागू नही होते फ़िर यदि बात आये मानव को छोड़ कर दूसरी प्रजातियों यानी जानवर आदि .आदि , की तो राम मालिक!
ऐसा ही हाल है हमारे घरेलू जानवर का पहली बात विकास की दौड़ में ये जीव अब अप्रासंगिक हो रहे है और विलुप्त भी क्योंकि अब न तो खरिहान है और न ही चरागाह और न ही इन जगहों पर लगने वाली चौपालें जो अपने आप में एक संस्कृति हुआ करती थी , रही सही कसर मशीनों ने पूरी कर दी!
पर इसके बावजूद एक तबका है जो अभी भी इन्ही जीवों पर निर्भर है किन्तु सिलसिला-ए-आम ये है कि या तो ये तबका सवेंदन हीन हो चुका है या गरीबी ने इसे ऐस बना दिया या फ़िर लालच और आगे बढ़ने की लालसा ने मानव को हबसी बना कर रख दिया तभी तो ये लोग इन जानवरों से बेतहासा काम लेते है बिना पूरी खुराक दिये।
आप देखे तो ये ह्र्दय विदारक दृष्य हर सड़क व गांव में मिल जायेंगे, कभी तांगें की शक्ल में जिस पर आदमियों का पहाड़ रखा होगा और बेचारा एक घोड़ा या खच्चर जो जमीन नापने की भरसक कोशिश करने के बावजूद उसकी टांगे सरकती हुई नज़र आयेंगी ...........
कही बैलगाड़ी पर गन्ना य फ़िर अनाज़ का हिमालय लादे दो बैल जो पूरा भोजन न मिलने से कुपोषित हो चुके है पर मालिक की चाबुक या पैना या डण्डा उन की पीठ की खाल को उघाड़ता हुआ उन्हे आगे बड़ने का हुक्म बज़ा रहा होगा और ऐसा ही कुछ खेतों में...........

ईट के भट्टों पर तो टट्टुओं की दशा और खराब है जहां उन पर इतनी ईंटे लाद दी जाती है कि कलेज़ा ही फ़ट जायें लेकिन आदमी है की उस का दिल पसीजता ही नही बावजूद इसके की इस आदमी ने मानव-गुलामी का वह दौर भी देखा है जब आदमी आदमी पर कोड़े बरसाता था और जानवरों से भी बुरी दुर्दशा की जाती थी और कही कही तो आज़ भी ऐसा होता है .....................

श्रीमती मेनका गांधी ने जानवरों के अधिकारों की जो लड़ाई लड़ी वह सराहनीय है पर क्या वे कानून लागू है जिनमे जानवर की क्षमता से अधिक बोझा ढ़ोने पर सजा का प्राविधान है ?
मुझे कोई कल ही बता रहा था कि हमारे यहां बेहजम पुलिस चौकी पर एक सिपाही था वह हर ईंट भट्टे से ईंट लेकर आने वाली बोगियों (ट्ट्टू  खच्चर गाड़ी) को रोककर पिटाई करता था और इस हिदायत के साथ कि आइंदा से जानवर पर इतना बोझ नही लादोंगे .सलाम है ऐसे व्यक्ति को.शाय्द वह एनीमल राईट के बारे में न जानता हो कि जो वह कर रहा है वह कानूनन जरूरी है पर मानवीय दृष्टिकोण से वह यह बेहतर काम किये जा रहा था यदि पुलिस इस कानून का पालन कराने में थोड़ा सक्रिय हो तो बहुत सुधार आने की गुंजाइस है।
एक नियम का मै भी पालन करता हूं कि रास्तें में यदि कोई तांगा या बैलगाड़ी जा रही होती है तो मै अपने मशीनी वाहन का हार्न नही बजाता और सड़क से अपना वाहन उतार कर आगे निकल जाता हूं क्योकि मेरे हार्न बजाने के पश्चात जो प्रतिक्रिया उस बैलगाड़ी या तांगे के मालिक द्वारा होगी वह मुझे पता है ? हार्न बजने के बाद कुछ जोरदार चाबुक उस जानवर की पीठ पर पड़ेगे  ......... . साथ ही उसे इतने बोझ के साथ सड़क से नीचे उतरना और फिर चढ़्ना .........उसकी इस शारीरिक मेहनत और यातना के बनस्पति मेरे मशीनी वाहन पर कोई फ़र्क नही पड़ेगा ! तो क्या आप मेरे इस विचार को अपनायेंगे !
मै यह लेख इस लिये नही लिख रहा हूं कि कोई मेरे लेखन की तारीफ़ करे या ब्लाग जगत में चर्चा हो मै चाह्ता हूं कि सक्षम लोग कुछ करे !
यहां पर एक कविता का जिक्र जरूरी है जिसे वंशीधर शुक्ल जी ने लिखा है उनके ह्रदय के ये उदगार किसी फ़रिस्ते के उदगार से कम नही .---------

धन्य गाय के पूत

बछरा, धन्य गाय के पूत
तोरइ चारा छीनि - छीनि के दुनिया भइ मजबूत।
बछरा धन्य गाय के पूत।

जलमति खन तोरी अम्मा का दूधु लेयं सब छीनि
तुम अम्बा अम्बा करि रम्भउ, जियउ घास खर बीनि

पी-पी दूधु मोटाय जगत तुम सूखि होउ ताबूत।
बछरा धन्य गाय के पूत

दूध मठा का खांरउना कुछु जूठनि तुमका देय,
दही दही घिउ-मसका करिके जगतु खास रस लेय।
टुकरू -टुकरू तुम दयाखउ जग की यह करिया करतूत।
बछरा धन्य गाय के पूत

दूध छुटई माता का बिछुरन पिता न देखय देंय,
जानइ कह बेचइ, कह पठवंइ, बेंचि मुनाफ़ा लेइ।
सउदा बने फ़िरउ दर दर मां कोइ खेतिहर के सूत।
बछरा धन्य गाय के पूत
नथुना नाथइ डोरी बाधइं मूडें बांधि सिरउंधा
मुहें मुसिक्का आखिंन पट्टी गलगल घींच गरउंधा..............शेष..............
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कही मैने पढ़ा था शायद मनुस्मृति में कि आठ बैलो से हल चलाने वाला अति उत्तम, छ: बैलो वाला हल उत्तम और चार बैलों वाला हल सामान्य तथा दो बैलों वाला हल दोषपूर्ण व पापी मनुष्य द्वारा चलाया जाता है  
हम जानवर से काम तो लेते है और वह भी उसकी क्षमता से अधिक बिना उसकी सेवा किये क्या हम अपने अतीत से सबक नही ले सकते जब इन जीवों का सम्मान, और सेवा होती थी क्योकि सदियों से ये हमारे भरण -पोषण में सहयोगी रहे है और आज भी है ।


कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन-२६२७२७
भारत वर्ष
९४५१९२५९९७