Wednesday, April 23, 2008

प्रकृति की मार से छिन्न होती मानवता

किसी ने कहा है कि थर्ड वर्ल्ड वार पानी के लिये होगा तो यह बात बुन्देलखंड़ के हालातों में साफ़ परिलक्षित होती है

बुन्देलखन्ड जहां आदमजात अनियोजित विकास कि मार झेलने के लिये विबश है और सरकार राहत के नाम पर कुछ कर पाने में करीब करीब बेबश.................नतीजा मवेशी सडकों पर पानी के बिना दम तोड़ रहे है और आदमी घर बैठ कर ये सोच रहा है कि खाना और पानी लाया जाये तो कहां से............यहां लोगों ने अपने मवेसियों को बेदर कर दिय है ताकि ये जीव कही भूख और प्यास के मारे इन्के दरवाजों पर दम न तोड़ दे लेकिन यसे हालात में मौत तो निश्चित है ये मवेशी अब सड़्को पर तड़प-तड़प कर दम तोड़ रहे है जमीन की छाती फट चुकी है अब इस वसुधा मां के पास कुछ नही बचा क्योकि हमनें इस मां की छाती नोच नोच कर दूध की आखिरी बून्द तक निकाल ली!!!!!!!!!!
चारों तरफ़ दरारे और सूख चुकी कटीली झाड़िया ही शेष है और दर्दनाक तथ्य ये है कि भूख से तड़पते जानवर इन कांटों को खा कर भूख मिटाने की नाकाम कोशिश कर रहे मैं बड़े यकीन से कह सकता हूं कि यदि आप में संवेदना का एक भी अंश मात्र है तो यह सब देख कर आप की छाती जरूर फ़ट जायेगी।
मेरे एक मित्र है अभिषेक दीक्षित जो रिलायशं कम्पनी मे अधिकारी है और बुन्देलखडं मे ही तैनात है और वे रोज मुझसे टेलफोन पर बात कर यही बताते है कि आज वह कौन से गांव में है और वहा मानवता पानी के बिना कैसे तार तार हो रही है आज उन्होंने हमीरपुर के पौथियां गांव के प्रेमशंकर से बात करवायी जो हार्टीकल्चर डेपार्ट्मेन्ट में कार्यरत है उनकी पीड़ा से सरोबार आवाज़ सुनने के बाद बस एक ही शब्द मेरे मुख़ से स्फ़ुटित हो सका---हे भगवान..........उन्होंने बताया कि बेतवा में सिर्फ़ एक फ़ुट पानी व यमुना में दो फ़ूट पानी बचा है जिसकी वजह मानव द्वारा लगातार प्रकृति का दोहन तो है ही किन्तु यहां कुछ और बात भी है बचा हुआ पानी भी लगातार अवैध उत्खनन से जमीन में धसता जा रहा है क्योकि जमुना से बालू और बेतवा से मौरंग भारत के विभिन्न हिस्सों मे भेजी जाती है और यह व्यापार जीवों की लाशों पर बद्स्तूर जारी है बिना रुके.......................................................

बेतवा मे २५ फ़ुट गहरायी तक मौरंग का उत्खनन किया जा रहा है मै नही जानता कानून क्या कह्ता है पर प्रेमशंकर के मुताबिक बेतवा का पानी इस उत्खनन से और नीचे जा रहा है और यह कहते हुए प्रेमशंकर की आवाज़ भर्रा गयी जैसे किसी कि कोइ प्रिय वस्तु य सगा सबंधी उससे दूर जा रहा हो वही दर्द था उनकी आवाज़ में.........आखिर यहां तो ये पानी की एक एक बूंद जीवों की खत्म होती सांसों का सहारा है।
वहां के लोगो का कहना है कि यदि हालात ऐसे ही रहे तो लोगों को यहा से विस्थापित करना पडेंगा और कोइ विकल्प नही है पर जब पूरी धरती को हम ऐसा कर देगें तो आखिर में कहां जायेगें......................???

तमाम बाते है पर मेरे पास उन परिवारों और उन बेसहारा जनवरों के हालातों को बयान करने के लिये माकूल शब्द नही है कि कैसे वें इस अकाल से जूझ रहे है आप खुद ही समझ लीजियेगा.................................!!!

भारत की विभिन्न भोगोलिक स्थितियां और यहां का बदलता मौसम तो सदियों से है पर आदमी खुश नही तो दुखी भी नही था लेकिन आज जो भी येह हो रहा है सब मानवजनित समस्यायें है और इनका निदान भी मनुश्य के पास है केवल वह प्रकृति का अन्धाधुन्ध दोहन करना छोड़ दे और अपने इस बिना सोचे समझे अनियोजित विकास पर लगाम कस ले बहुत कुछ इतना करने से ही नियन्त्रित हो सकता है। इसका एक उदाहरण है मेरे पास ७०-८० के दशक मे जो लोग यह कह रहे थे कि खादों, कीटनाशक रसायनों, और संकर बीजो का प्रयोग करो आज वही यह कह रहे है कि इस सब को बंद करो नही तो जमीन अनुउपयोगी हो जायेगी इसका कारण तो समझ ही चुके होगें आप कि हमें ये पता हि नही होता है कि हमें क्या करना चाहिये और क्या नही बस कोई विदेशी कम्पनी ने कुछ लालच दिखाया और कुछ विदेशी दबाव और हम शुरू हो गये विकास कि बेनतीजा दौड़ में............खैर..................

आप को बताना चाहूंगा कि खीरी जनपद में १०० से आधिक गांव आग में जल चुके है और यहा एक भीषण त्राशदी ने जन्म ले लिया है मनुष्य जानवर फ़सल पेड़ पौधें सभी कुछ जलकर राख हो चुका है मेरी समझ मे एक बात आती है खीरी जहां कभी जमीन पानी कि वज़ह से गीी हि रहती थी चरो तरफ़ हरियाली कीचड़ पानी से डबडबायी नदियां, तालाब, पोखर, और कुयें इस बात को बहुत ज्यादा दिन नही हुये करीब पिछले २० साल पहले की ही बात है किन्तु आज जहां पानी का इतना भराव रहता था कि कहते है हाथी भी डूब जाये आज वहां रेत उड़ती है तालाब, नदियां कुयें सभी कुछ सूख चुका है पे्ड़ों की जगह मकान, कारखानें और कृषि भूमि ने ले ली नतीजा सामने है मैने अपनी दादी से सुना है कि अक्सर हमारे गांव मे आग लग जाती ्थी पर सब गांव वाले कुओं और तालाबों से पानी ला ला कर आग पर फ़ौरन काबू पा लेते थे पर क्या अब हैंड पम्प से बाल्टी भरभर कर आग की आसमान छूती लपटों को बस मे किया जा सकता है.................................................
चलो प्रकृति मां को एक बार फ़िर से सवांरें तभी मानव इस धरती पर अपना अस्तित्व बचा सकता है -एक चेतावनी.....................

कृष्ण कुमार मिश्र
९४५१९२५९९७