Wednesday, April 2, 2008

महात्मा गांधी और आज का भारत- गांधी को मारने की एक और कोशिश


और आज .....................३१ जनवरी 2008
===१२ फ़रवरी १९४८ बापू के नाम सारा देश === ...............................

भारत कि एक शर्मनाक घटना जिसे भुलाया नही जा सकता - बापू (बापू तो हमारे है ) नही राष्ट्र पिता कि देह भस्म विसर्जन और भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्र पति कि नामौजूदगी ऐसा सिर्फ़ शायद भारत में हो सकता है क्यो कि जिस महामानव कि बदौलत हमें तख्तो ताज मिला हम उसे ही नज़रंदाज़ करने की बेवकूफाना हरकत कर रहे है अरे उस दिन तो राष्ट्रीय दिवस की तरह पूरे भारत को उस महा मानव की पवित्र देह भस्म के विसर्जन मे हिस्सा लेना था जैसे हमारे पुरखो ने सन १८४८ में किया था महात्मा लोगो के दिलो में बसते है उन्हें किशी खिताब की जरूरत नही पर अगर भारत सरकार उन्हें राष्ट्र पिता मानती है और उनके नाम का सिक्का चलवाती है तो उसे यह मालूम होना चाहिए की राष्ट्र पिता के अन्तिम भौतिक अंश यानी देह भस्म विसर्जन को किस तरह आयोजित करना चाहिए.........क्या पंडित नेहरू, सरदार पटेल होते तो ऐसा होता यहा तक की कांग्रेस जो गांधी के नाम पर राजनैतिक लाभ लेती आयी है उस पार्टी का अध्यक्ष वहा मौजूद था मेरा मतलब हुकुमों से है या फिर सबने सभ्यता का दामन छोड़ दिया है .या फिर आफत में ही बापू याद आते है या फिर वोटों के लिए बापू..........अरे कब तक भुनाते रहोगे बापू को.............क्या रूस में लेनिन के साथ या चीन में माओ के साथ ऐसा होता (मान लेते है की वहा भी देह भस्म विसर्जन किया जाता तब ) मेरे मुताबिक तो उस रोज़ भारत में सरकारी उत्सव के तौर पर एक माहौल बनाना चाहिए था ताकि ने पीढी में एक संदेश जाता बापू के आदर्शों का उनकी प्रासिंगकता और मजबूत होती यहाँ एक उदाहरण देना चाहूँगा की एक व्यवसायिक फ़िल्म ने गांधीगिरी को हमारें आज के समाज में जिस तरह स्थापित किया उसका कोई जवाब नही है यदि सरकार उस रोज आल इंडिया रेडियो से बापू के प्रिया भजनों गीतों बापू की आवाज को पूरे दिन ब्राडकास्ट करती टेलीविजन पर दिन भर बापू को दिखाया जाता तो हमारे समाज में यकीनन बापू की प्रासिंगकता बढ़ती और पूरा देश लाभान्वित होता खासतौर पर युवा पीढी पर टेलीविजन पर अपराध सी दी कांड रैप कांड और नर्तकियों के अर्धनग्न जिस्म दिखानें से ही फुर्शत नही बापू का मान बापू के असूलों को समाज में स्थापित करने की चिंता किसे !! वह समाज सबसे गरीब है जिसका कोई गौरवशाली इतिहास नही है और हम अपने इस संघर्षशील अतीत को भुलाने पर तुले है जब दुनिया के तमाम मुल्क अपने अतीत को दुहराने में संघर्सरत है जब समाज को दिशा देने की अवाश्यक्ताए मालूम होगी और हम इतिहास के पन्नों से लक्ष्मी बाई राणा प्रताप गांधी सुभाष को खोजें गे तो वह सब मिलेंगें जरूर पर समाज में उनकी प्रासिंगकता समाप्त हो चुकी होगी तब हम क्या बच्चों को सदी का नायक किसी नर्तक को या फिर नर्तिका को या फिर विदेशी धनी व्यक्तियों के नाम बताएँगे जिन्हें हमारे युवा बहुत ढंग से जानते होंगे और इन नामों के सहारे क्या हम इन १०० करोड़ भारतीयों को किसी लक्ष्य की तरफ़ उन्मुख कर पायेंगे नही विल्कुल नही तब तक हमारी पीढी अमेरिकन कम्पनियों की गुलाम हो चुकी होगी वह सिर्फ़ कॉल सेंटर या फिर विदेशी वस्तुवों के नाम जानते होंगे भारतीयता का तड़का समाप्त हो चुका होगा .................

आजादी के ६० वर्षों के उपरांत मोहनदास करमचंद गांधी यानी अपने बापू की अन्तिम भौतिक निशानी यानी उनके शरीर की भस्म जो अभी तक दुबई में बसे एक भारतीय व्यवसायी भरत नारायण के पास थी उन्होनें इसे मणि भवन गांधी संग्रहालय मुम्बई को दे दिया किंतु तुषार गांधी, महात्मा गांधी के पोते को ऐसा लगा की भविष्य में राजनैतिक दल इसका फायदा उठा सकते है या फिर बापू के भक्त उस स्थल को जहाँ बापू के शरीर की भस्म रक्खी है को पवित्र धार्मिक स्थान में परवर्तित की जा सकते है जबकि बापू एक धार्मिक हिंदू परिवार से थे और धर्म की परम्परा यह कहती है की मृत देह को अग्नि देने के बाद बची अस्थिया व राख को पवित्र नदी खासतौर से गंगा में प्रवाहित किया जाना चाहिए इसी विचारधारा से उन्होंने सन १९९७ में एक प्राइवेट बैंक में रक्खी बापू की देह भस्म को कोर्ट द्वारा प्राप्त कर प्रयाग में संगम में विसर्जित कर दिया था अब यदि कही बापू की देह भस्म बची है टू वह स्थान है पुणे के आगा खान के महल में जहाँ बापू १९४२ से १९४४ तक राजनैतिक बंदी के तौर पर रहे थे और दूसरा स्थान है कैलीफोर्निया के लोस अन्जेल्स शहर में योगेन्द्र आश्रम जहाँ बापू की देह भस्म मौजूद है पर ना जाने कितने घरों मी बापू होंगें कौन जाने उन आजादी के दीवानों में किस किस नें अपने महानायक की देह भस्म को उनकी निशानी के रूप में रख रक्खा हो !!

३० जनवरी १९४८ जब बापू भौतिक रूप से हमसे अलग हुए और उसके १४ दिनों बाद १२ फरवरी १९४८ जब बापू की देह भस्म को हिंदू धार्मिक परम्पराओं के अनुसार और हवाई जहाजों से हिंद्माहसागर से लेकर भारत वर्ष की सभी नदियों में विसर्जित किया गया इन १४ दिनों तक पूरी दुनिया शोकाकुल थी दुनिया के सभी मुल्कों के राष्ट्र अध्यक्षों ने शताब्दी के इस महानायक की मृत्यु पर शोक प्रगट किया बल्कि पूरी मानव आबादी में एक शोकलहर व्याप्त थी
हुआजिस साम्राज्य की जड़े गांधी ने हिला दी उस साम्राज्य को भी गांधी की नामौजूदगी का दुःख हुआ भारतीयों को ही नही वरन ब्रिटिश अमेरिकन रुस्सियन सभी हतप्रभ थे की राष्ट्र पिता महात्मा गांधी को उन्ही के मुल्क में कोई गोली मार देगा जिस व्यक्ति के एक इशारे पर ३३ करोड़ भारतीय उठ खड़ा होता हो जिससे बर्तानिया हुकूमत हर व्यक्ति खौफ खाता हो जिसकी एक आवाज पर ब्रिटिश सरकार की मजबूत नीवं हिलने लगती हो और बंकिम्घम पैलेश थरथरा जाता हो उसे उसके ही देश मी मारा जाएगा .....................!!

किंतु ३१ जनवरी २००८ को जब मणी भवन में रक्खी बापू की देह भस्म को अर्बियन सी अरब महासागर में विसर्जित किया गया तो मुझे बहुत दुःख हुआ यह पुनीत कार्य महत्मा की प्रपौत्री श्रीमती नीलम बेन पारेख ने किया वहां सिर्फ़ बापू के परिजनों व कुछ अन्य लोगो के अतिरिक्त भारत सरकार के नुमाइंदों में गृह मंत्री महारास्त्र के गवर्नर व उप मुख्यमंत्री ने ही शिरकत की ?.................!!

अब आप सोचिए की भारत के राष्ट्र पिता महात्मा गांधी जिनकी आवाज पर ३३ करोड़ भारतीय ही नही बल्कि दुनिया के तमाम देशो के लोग एक साथ उठ खड़े होते थे जिस महामानव के आगे पूरा विश्व झुक गया जिसे दुनिया में देवताओं के बाद सबसे ज्यादा मान्यता मिली हो जो अरबों लोगों के आदर्श हो जिनकी तस्वीर हमने अपनी नोटों पर छापी हो जिन्होंने हमे ही नही पुरी दुनिया को क्रांती का एक नया ढंग समझाया हो हमारी सोई हुई या यूं कह ले की मर चुकी आत्माओं में जान डाली हो और हम गुलामी से आजादी की तरफ़ चल पड़े हो ...............................
इन्ही बापू की जब अश्थिया व देह भस्म सन १२ फरवरी १९४८ को विसर्जित की गयी थी तो तमाम देशों के राष्ट्र अध्यक्षों के अलावा दुनिया के हजारों लोगो के अलावा भारत के ३३ करोड़ भारतवासी जिनमें मई प्रधानमंत्री राष्ट्र पति और तमाम ऊँचे ओहदों पर बैठे भारतीयों को शामिल करता हूँ। उस हुजूम और उसकी भावनाओं का जिक्र मई शब्दों में नही कर सकता किंतु आज जब हमें आजाद हुए ६० वर्ष हो गए और हम कुछ सीखने के बजाये अपनी परम्परा आदर्श, व्यवहार और सदाचरण जैसी बातों को ही भूल गए की बापू की बदौलत जो लोग आज बड़ी बड़ी कुर्सियों पर बैठे है उन्हें बापू की देह भस्म विसर्जित किए जाने पर वहाँ मौजूद रहने की फुर्शत नही मैं कहता हूँ कि क्या लेनिन(उदाहरण के तौर पर) की देह भस्म विसर्जित करनी होती तो क्या रूस के राष्ट्र पति पुतिन वहाँ मौजूद नही होते या फिर अब्राहम लिंकन या जार्ज वाशिंगटन की देह भस्म विसर्जित करनी होती तो जार्ज बुश वहाँ मौजूद नही रहते या फिर माओ की अस्थिया प्रवाहित करनी होती तो क्या चीन के मौजूदा राष्ट्र अध्यक्ष वह मौजूद न रहते पर भारत में ऐसा नही हुआ आज यदि पंडित नेहरू होते तो क्या ऐसा होता या फिर नेहरू, पटेल, डाक्टर राजेंद्र प्रसाद मौलाना आजाद यह तक कि लोहिया जयप्रकाश नारायण कि आत्माएं यह देख कर क्या खुश हो रही होगी ?

गांधी को नाथूराम गोडसे ने नही मारा गांधी को हम मारने कि कोशिस कर रहे है पर ये असम्भव है ....ये एक शर्मनाक सच है जिसे मैंने बयान करने कि कोशिश की है आप की प्रतिक्रियाओं का इन्तजार रहेगा ............

कृष्ण कुमार मिश्र

1 comment:

अमिताभ मीत said...

क्या कहूँ ? मुझे अभी बस "दिनकर" की ये पंक्तियाँ याद आती हैं :
"पर, तू तापों से परे, कामना-जयी
एकरस, निर्विकार
पृथ्वी को शीतल करता है
छाया-द्रुम-सी बाहें पसार"