Tuesday, July 10, 2007

आज का वाकया

आज मेरे छोटे भाई जैसे शिष्य डाक्टर ने फूलबेहड नाम के कस्बे मे क्लीनिक की शुरूवात की तो मुझे वहा जाना पडा रास्ते में दो मन्दिर आमने सामने थे जिसमे बायें वाला मन्दिर बडा व दाये वाला छोटा व पुराना था मैं असमन्जस में था कि किस तरफ़ सिर झुकाऊ आखिर कार मैं ने पुराने व छोटे मन्दिर कि तरफ़ अभिवादन किया लेकिन तुरन्त मेरे मन में खयाल आया कि मैंने ऐसा क्यो किया कही मेरे साम्यावादी होने का सबूत तो नही क्योकि छोटे मन्दिर की तरफ़दारी कर मैंने उसे बडे व अतिपुज्या मन्दिर को नज़रन्दाज़ किया या फिर पुरातत्वा के प्रति प्रेम!